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उसी नगर में श्रीपुर से नरसुन्दर नाम का एक सार्थ व्यापार के लिए आया। उसने तारावली की मंगनी की। नरदत्त श्रेष्ठी ने उसकी मंगनी स्वीकार कर ली । नरदत्त तारावली के विवाह की तैयारी में लग गया। तारावली को जब इस बात का पता लगा तो उसने नरसुन्दर से विवाह करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। नरदत्त इस बात पर तारावली पर बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने कठोर शब्दों में तारावली की खब भर्त्सना की। तारावली को पिता के इस व्यवहार से बड़ी चोंट लगी। वह रात्री के समय सरोवर पर पहुँची और एक वृक्ष के नीचे बैठकर रुदन करने लगी समुद्रदत्त भी तारावली के याद में वहीं पहुंचा। वहाँ रुदन करती हुई तारावली को देखकर उसने आश्वासन दिया। तारावली की माता भी पुत्री की खोज करती हुई वहाँ पहुँची और उसे आश्वासन दे कर घर ले आई। नरदत्त को तारावली की माता ने खुब समझाया और उसकी इच्छानुसार तारावली का विवाह समुद्रदत्त से करवा दिया। समुद्रदत्त ने बड़ी मुश्किल से दूसल-दुर्मुख से संपत्ति का तीसरा हिस्सा प्राप्त किया। समुद्रदत्त ने प्राप्त संपत्ति से अपने व्यवसाय में वृद्धि की। दूसल-दुर्मुख समुद्रदत्त को अपने मार्ग का कांटा समझकर उसे मार डालने का उपाय सोचने लगे ।
___ एक दिन दूसल-दुर्मुख ने समुद्रदत्त से समुद्रयात्रा का आग्रह किया। बहुत आग्रह से समुद्रदत्त तारावली एवं दूसल-दुर्मुख के साथ व्यापार के लिए नौका पर आरूढ़ हो सिंहलद्वीप के लिए चला। सिंहलद्वीप पहुँचकर उसने व्यापार किया जिससे उसे आठ गुणा लाभ हुआ। वहाँ से नौका में सामग्री भरकर स्वदेश के लिए रवाना हुआ। मार्ग में एक द्वीप आया। दूसल-दुर्मुख ने श्रेष्ठी पुत्र से कहा-मीठा पानी का संग्रह समाप्त हो गया है । इस द्वीप में एक मीठे पानी का कुआं है। आपके पिता ने भी इसी कुएँ से पानी भरा था। वहां से पानी लाया जाय । समुद्रदत्त पानी लाने के लिए कुए के पास पहुँचा। दूसल-दुर्मुख भी दबे पाव उसके पीछे चल पड़े और अवसर देखकर समुद्रदत्त को कुएं में ढकेल दिया। यह दृश्य तारावली दूर से ही खड़ी-खड़ी देख रही थी। उसने समुद्रदत्त को कुएं में गिरते हुए देख होहल्ला मचाया । समुद्रयात्री भाग कर वहाँ पहुँचे । मंच की सहायता से समुद्रदत्त को कूएँ से निकाला। उस कुएं में बहुत रत्न थे। समुद्रदत्त ने कुएँ से निकलते समय बहुत से रत्न इकट्ठ किये। अन्य यात्रियों ने भी वहां से रत्न लिए । यात्रियों को ले जहाज आगे बढ़ा।
एक रात्रि में दूसल-दुर्मुख ने अवसर देखकर सागरदत्त को समुद्र में गिरा दिया। नौका के आगे बढ़ने पर दूसल-दुर्मुख ने होहल्ला मचाया । यात्रियों ने समुद्रदत्त की खुब तलाश की किन्तु समुद्रदत्त कहीं भी नहीं मिला । पति के वियोग में तारावली ने बहुत विलाप किया। नौका जयमंडण पहँची। घर आकर तारावली ने अपने पिता से सारी बात कही । नरदत्त राजा के पास पहुंचा। उसने दूसल-दुर्मुख की शिकायत की। प्रमाण के अभाव में राजा दूसल-दुर्मुख के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सका। तारावली अपनी सास के साथ पिता के घर आई और वही सुखपूर्वक रहने लगी।
__इधर समुद्रदत्त समुद्रदेव के वरदान से पद्मासन लगाकर समुद्र पर तैरने लगा। वेलाविलास नामका एक विद्याधर उसी मार्ग से जा रहा था। समद्र पर पद्मासन के साथ तैरते हुए समुद्रदत्त को देख उसे बड़ा आश्चर्य हआ। उसे केवली की भविष्यवाणी याद आई कि-जो पद्मासन में समद्र पर तैरता हुआ व्यक्ति देखेगा वही तेरा जमाई बनेगा। वेलाविलास ने उसे उठाया और अपने घर ले आया। खब सम्मान पूर्वक उसे अपने घर रखकर अपनी पुत्री रतिसुन्दरी के साथ उसका विवाह कर दिया। समुद्रदत्त रतिसुन्दरी के साथ सुखपूर्वक समय बीताने लगा।
एक दिन समुद्रदत्त को अपनी पूर्व पत्नी तारावली की याद आई । उसने वेलाविलास से घर जाने की इच्छा प्रकट की। वेलाविलास ने समुद्रदत्त को घर जाने की अनुमति दे दी। विमान तैयार किया गया। उसमें बहुत से कीमती रत्न भरे । वेलाविलास रतिसुन्दरी एवं समुद्रदत्त तीनों विमान में बैठकर जयमंडन पहुँचे। समुद्रदत्त
(नौ)
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