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________________ अभिषिक्त कर वनवासी हो गया। नरसीह कुमार ने अपनी वीरता से अनेक राजाओं को वश कर लिया और राज्य की वृद्धि की। नरसीह राजा सुख पूर्वक राज्य का संचालन करने लगा। एक बार सुदर्शन नाम के आचार्य अपने विशाल शिष्य परिवार के साथ नगर के बाहर उद्यान में पधारे। नरसीह राजा रम्भावली के साथ आचार्य के दर्शन के लिए गया। आचार्य ने सम्यक्त्व का स्वरूप समझाया । प्रवचन के बाद राजा ने आचार्य को वैराग्य का कारण पूछा। आचार्य ने अपने वैराग्य का कारण बताया । आचार्य से वैराग्य का कारण सुनकर राजा को धर्म के प्रति विशेष श्रद्धा उत्पन्न हुई। उसने रम्भावली के साथ सम्यक्त्व धारण किया। सम्यक्त्व का परिपालन करता हुआ राजा मरा और सौधर्मदेवलोक में तीन पल्योपम आयुष्यवाला चंद्रावतंसक नामक विमान में सूरप्रभ नामक देव बना। पति की मृत्यु से रम्भावली बड़ी दुःखी हुई । वह पति के साथ सती हुई और मरकर सुरप्रभ देव की अग्रमहिषी बनी। द्वितीय अवसर-समुद्रदत्त और तारावली की कथा : भारतवर्ष में काशी जनपद में जयमंडना नामकी रमणीय नगरी थी। वहाँ जयपाल नामका राजा राज्य करता था। उसी नगरी में सागरदत्त नाम का धनाढ्य श्रेष्ठी रहता था। उसकी अशोकश्री नामकी पत्नी थी। पुत्र के अभाव में वह सदा व्याकुल रहती थी। एक दिन उसने समुद्रदेवता से पुत्र के लिए प्रार्थना की कि यदि मुझे पुत्र होगा तो उसका नाम समुद्रदत्त रखंगी। ऐसी प्रार्थना कर वह रात में सोई। उसी रात्रि में उसे समुद्र का स्वप्न आया । प्रातः अपने पति से उसने समुद्र का स्वप्न कहा । प्रत्युत्तर में पति ने कहा-तुम्हें समुद्र जैसा गम्भीर पुत्र होगा। इधर नरसीह राजा का जीव देवलोक से च्युत होकर अशोकश्री के उदर में अवतरित हुआ । अशोकश्री गर्भवती हुई। एक दिन सागरदत्त श्रेष्ठी को समुद्रयात्रा का विचार आया । सागरदत्त श्रेष्ठी के दूसल-दुर्मुख नाम के दो दासीपुत्र थे । सेठ उन्हें अपने सगे पुत्र जैसा मानता था। उन दासी पुत्रों को एक दिन सेठ राजा के पास ले गया और बोला-ये दोनों मेरे पुत्र जैसे हैं इन्हें मैं अपने सगे पुत्र जितना हक्क देता हूँ । राजा ने सेठ की बात स्वीकार कर ली । घर आकर दुसल-दुर्मख से बोला-यदि अशोकश्री को पुत्र होगा तो उसे मेरे धन का तीसरा हिस्सा देना । दोनों ने यह बात स्वीकार कर ली । सागरदत्त पत्नी के बार-बार मना करने पर भी नहीं रुका और समुद्र यात्रा के लिए नौका पर आरूढ़ हो कुछ यात्रियों के साथ चल पड़ा । मार्ग में समुद्र में बड़ा तूफान आया। नौका समुद्र में डूब गई और सेठ की मृत्यु हो गई। इधर अशोकश्री ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । जन्म उत्सव के बाद बालक का नाम समुद्रदत्त रखा गया । पति के मृत्यु के समाचार सुनकर अशोकश्री बड़ी दुःखी हुई । समुद्रदत्त बड़ा होने लगा । दूसल-दुर्मुख ने सेठ की समस्त संपत्ति पर अधिकार कर लिया । सेठानी ने संपत्ति का तीसरा हिस्सा मांगा तो उन्होंने देने से इनकार कर दिया। अशोकश्री बड़ी कठिनाई से जीवन निर्वाह करने लगी। ___ इधर रंभावली भी देवलोक से च्युत होकर जयमंडना नगरी के धनाढ्य सेठ नरदत्त की पत्नी नरकांता की कुक्षि से पुत्री रूप से जन्मी। जन्म के पश्चात् उसका नाम तारावली रखा गया । तारावली युवा हुई। एक दिन तारावली अपनी सखियों के साथ जलक्रीड़ा के लिए सरोवर पहुँची। उस समय समुद्रदत्त भी अपने मित्रों के साथ सरोवर में जलक्रीड़ा कर रहा था। दोनों की दृष्टि चार हुई और दोनों एक दूसरों पर आसक्त हो गए। (आठ) ___ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002596
Book TitleManorama Kaha
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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