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________________ Mr Hyurv साथ ही मणोरमा कहा की अनेक गाथाएं पूर्ववर्ती तथा उत्तरवर्ती निम्न ग्रन्थों में भी मिली है। वे ग्रन्थ ये हैं१. बृहद्कल्पभाष्य १०. प्रवचनसारोद्धार चउप्पण्णमहापुरिसचरियं ११. आचारांग नियुक्ति वज्जालग्ग १२. समराइच्चकहा गाहारयणकोस १३. संवेगरंगशाला गाथासप्तशती १४. संबोधसप्ततिका उत्तराध्ययन १५. श्राद्धदिनकृत्य उत्तराध्ययन नियुक्ति १६. धर्मरत्नकरंडटीका आख्यानकमणिकोश १७. आदिनाथ चरित्र ९. उपदेशमाला मणोरमा कहा की जो जो गाथाएँ उपरोक्त ग्रन्थों में मिली है। इन्हीं ग्रन्थों की सहायता से उन गाथाओं के अशुद्ध पाठों की शुद्धि एवं त्रुटित पाठों की पूर्ति की है। धर्मरत्नकरंड टीका आचार्य वर्द्धमानसूरि की ही रचना है। इस टीका में अमृतमुखा स्थविरा का वृत्तान्त आता है। मणोरमा कहा में जो अमयमुहा (पृ. १६२-) स्थविरा का दृष्टान्त आता है उसी की अक्षरशः संस्कृत छाया है। इस दृष्टान्त में आने वाली प्राप्त एवं अपभ्रंश गाथाओं को आचार्य ने ज्यों की त्यों रख दिया है। हमने इस दृष्टान्त के अशुद्ध पाठों की शुद्धि एवं श्रुटित पाठों की पूर्ति इसी टीका के आधार से की है। साथ ही मणोरमा कहा के कतिपय वर्णन वर्धमानसूरिकृत आदिनाथ चरित्र में भी मिले हैं। इन पाठों से मणोरमा चरित्र के पाठों को शद्ध करने में बडी सहायता मिली है। मण पाठों की पूर्ति को [ ] ऐसे कोष्ठक में रख दिया है। उत्तरवर्ती संबोधसप्ततिका की टीका में पुरुषदत्त-करेणुदत्त की कथा आती है। यह कथा मणोरमा कहा में अक्षरश: मिलती है। मणोरमा कहा की इस कथा के अशद्ध पाठों की शद्धि संबोधसप्ततिका टीका से की है। इस प्रकार मणोरमा कहा की एक प्रति होने से अन्यान्य ग्रन्थों की सहायता से जहाँ तक हो सके पाठ को शद्ध करने का प्रयास किया है। अन्यान्य ग्रन्थों के उद्धरणों का मिलान करते समय जहाँ मणोरमाकहा के पाठ से अलग पाठ पड़ता हो उन पाठों को पाद टिप्पण में दिया है। ग्रन्थसम्पादन में हमने निम्न बातों को ध्यान में रखा हैपरसवर्ण के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया है। सामासिक शब्दों को-चिह्न से अलग कर दिया है। गाथाओं के नम्बर अवसर के अनुसार दिये हैं। संक्षिप्त कथासार: कथा के प्रारंभ में कवि मंगल में चौबीस तीर्थंकर, पंचपरमेष्ठी तथा गौतमादि गणधर एवं जिनवाणी रूप सरस्वती की स्तुति करते हैं। उसके बाद सज्जन दुर्जन का विश्लेषण करते हुए ग्रन्थकार सज्जन की प्रशंसा और दुर्जन की निंदा करते हैं। अन्त में दुर्जन की उपेक्षा कर ग्रन्थ का प्रारम्भ करते हैं। मणोरमा कहा में मनोरमा के चार भवों का वर्णन करते हैं। ये चार भव चार अवसर के रूप में विभक्त है। प्रथम अवसर में नरसीह और रंभावली के भव का वर्णन करते हैं जिसमें दोनों को सम्यक्त्व बीज की प्राप्ति हुई। द्वितीय अवसर में समुद्रदत्त और तारावली के भव का वर्णन है। इस भव में दोनों सम्यक्त्व को धारण करते (चार) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002596
Book TitleManorama Kaha
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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