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क्ख, पण, म्म, ट्र, च्छ, त्थ जैसे संयुक्त अक्षरों के स्थान पर ख, ण, म,ठ, छ, थ भी कई स्थान पर लिखे हुए उपलब्ध होते हैं । निरर्थक अनुस्वार भी कई जगह मिलते हैं और कई जगह अनुस्वार लिखना ही भूल गया है। धम्म, कम्म, तम्मि आदि की जगह धंम, कम, तंमि आदि कई जगह लिखा हुआ मिलता है। य श्रुति एवं न ण के विषय में प्रति में एकवाक्यता नहीं मिलती । कहीं कहीं य के स्थान पर इ और इ के स्थान पर य भी मिलता है। जैसे राइणा के स्थान पर रायणा, कइवय के स्थान पर कयवय। इस प्रकार ब के स्थान पर व का प्रयोग भी सर्वत्र मिलता है। कहीं कहीं एक ही अक्षर या शब्द दुबारा भी लिपिकार ने लिख दिया और कहीं कहीं सरीखे अक्षर दो-बार आते हैं तो लिपिकार उन्हें लिखना ही भूल गया है। पडिमात्रा को समझने में भी लिपिक ने भूल की है। पाठकों की जानकारी के लिए कुछ नमूने ये हैं
अशुद्ध
अशुद्ध
अणया पिसिओ पडिववज्जिऊण
जोगिएण जणदणो वयविसेसं पइम्मि
मम
पवट्टा
वेणुया निप्फणं देसो विहप्पई पुरिस्सा अण्णाए
जोगिगएण जण्णो वयविसिरिसं पयंम्मि पयत्था नविडिउ भयणि जावत्त ना एस होइव्वं पोरास पुराओ सुलोणेप अहे निइ जोगया विवसाय परि मिहवासो परकव्व
पुरिस
निवडिओ भइणि जाणवत्त न एस होयब्वं पोयणपुराओ सुलोयणेण अह निट्ठाइ जोग्गया ववसाय
धम्मामय
अण्णया पेसिओ पडिवज्जिऊण ममं धेणुया निप्फण्ण दोसो विहप्फई पुरिसा अणाए पुरिसा धम्मामय जण्ण संचिओ अरी वि वरमित्तो अच्चब्भुय फलाई धम्मत्थिणा सोग्गड सोऊण सवण्णुणो वरपुप्फेहि अक्खाणयं वट्टमाणाणं दिसोदिसि माया वि वग्घी सज्जणो लच्छी वि
जंण
पसि
संचिउ अमरी विं वरवत्तो अव्वब्भुय फलीइं धम्मात्थिणा सोगइ सोऊणं सव्वणुणो परपुप्पेहि सक्खाणयं बट्टमाणाणं दिसि सो दिसिं मोया वि वग्घी सज्जाणो लच्छ वि
भणि
मुहाणुभावो विसावडिउ कइवि पडएण वद्धाणय स सुंदरो सिज्जामाणेण सामाग्गी
गिहवासो परकज्ज भणि [य] महाणुभावो विसमावडिओ कइवय पडहेण वद्धावणय तोससुंदर सिज्जमाणेण सामग्गी
(दो)
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