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________________ प्रस्तावना प्रतिपरिचय : 'मणोरमा कहा' की कुल दो ही प्रतियां उपलब्ध हुई हैं। एक हस्तलिखित प्रति और १. हस्तलिखित प्रति-ला. द. संग्रह की है और जिसका नम्बर २७ है। इस प्रति के कुल पत्र २६५ है । जिसमें २३७ वां और २६३ वां पत्र जीर्ण होने से दुबारा लिखा गया है। प्रति की लम्बाई ३१ सेन्टीमीटर एवं चौड़ाई १२ सेन्टीमीटर है । प्रत्येक पत्र में १७ लाइने हैं । ग्रन्थ प्रमाण १५००० श्लोक है । प्रति के अन्त में ग्रन्थकार ने अपनी प्रशस्ति दी है। ग्रन्थ लिखाने वाले की प्रशस्ति नहीं है अतः ग्रन्थ लेखन का संवत् प्रति में नहीं दिया गया है किन्तु लिपिकार की लेखनशली एवं अक्षरों के आकार प्रकार से यह ज्ञात होता है कि सोलहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में किसी समय लिखी गई हो। अक्षर सुन्दर है ३, ४ और ८५ वें पत्र अत्यन्त जीर्ण एवं त्रुटित हैं। त्रुटित पत्र के पाठों की पूर्ति फोटो कोपी से की गई है। प्रति के बीच की डिझाइन अष्टकोण है और कहीं कहीं चतुष्कोण भी है। सम्पादन के लिए मुख्यरूप से इसी प्रति का उपयोग किया है। दूसरी फोटो कोपी । । (राज.) तेरापन्थी भण्डार की हस्तलिखित लेखन काल १६ वीं सदी का उत्तरार्द्ध होना होता है कि लिपिकार ने प्रति नं. १-पर से २. फोटो कोपी -फोटो प्लेट २२८, यह फोटो कोपी सरदारपुर प्रति की है। इसके मूल पत्र ३४१ है । साइझ ३९२८, ५ है चाहिए। यह प्रति अत्यन्त अशुद्ध है। इसकी लेखन पद्धति से ज्ञात ही इसकी प्रतिलिपि की है। मूल प्रति के अक्षर न समझने के कारण लेखक ने सैकड़ों भूले की हैं। मूल प्रतिकार ने जहां भूल से दुबारा पाठ लिखा है तो इसने भी दुबारा लिख दिया है। अक्षर निकालने के संकेत को न समझने के कारण लिपिकार ने रद्द पाठ को भी लिख दिया है। मूलप्रति के अशुद्ध पाठ को यथावत रखकर कहीं कहीं अपनी ओर से भी अक्षर छोड़ दिये हैं। जो अक्षर समझने में नहीं आये उन्हें लिपिकार ने अपनी समझ में जो आया उसे लिख दिया है । इस प्रति के अन्त में लिखाने वाले की या लेखक की प्रशस्ति नहीं है और न लेखन संवत् ही दिया है। संपादन कार्य में इसका नहींवत् ही उपयोग किया है। संशोधन : संशोधन के लिए ला० द० सं० की प्रति का ही प्रयोग किया है। इस प्रति में जहां जहां शब्द या अक्षर योग्य नहीं लगे वहां उस शब्द को अथवा अक्षर को मूल में रखकर ( ) ऐसे कोष्ठक में शुद्ध प्रतीत होने वाला पाठ रखा है। जहां जहां लिपिकार की गलती से शब्द के बीच के अक्षर छूट गये हैं उनकी पूर्ति योग्य कल्पना करके [ 1 ऐसे कोष्ठक में उन्हें रख दिया है। नष्ट पाठों के स्थान पर | इस प्रकार का रिक्त स्थान रखा गया है। रिक्त स्थानों के पाठ के लिए जहां अनुमान हो सकता है वहां [ ऐसे कोष्ठक में संभावित पाठ का निर्देश किया है। जब कि शंकित पाठ ( ? ) प्रश्न चिह्न युक्त कोष्ठक में रखा है । जो पाठ लिपिकार के दोष से अशुद्ध ही प्रतीत हुए हैं उन अशुद्ध पाठ के स्थान पर शुद्ध पाठ ही दिये गये हैं । । ...] ] Jain Education International 2010_04 इसके अतिरिक्त व ब, च-व, त्थ-च्छ, च्छ-त्थ, प-ए, ए-प, ट्ट-६, ६-ट्ट, टु-द्ध, द्व-, उ-ओ, ओ-उ, य-इ, इ-य अक्षरों के बीच के भेद को न समझने के कारण लिपिक ने एक अक्षर के स्थान पर दूसरा अक्षर लिख दिया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002596
Book TitleManorama Kaha
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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