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मणोरमा-कहा
- ता न तए अण्णहा विगप्पियव्वं । पणमंतो संजायपहरिसो रायाणं पणमिय सभवनं . आगओ धणचंदो । संजाय-पच्चएण ससिणेहं समाया सीलसुंदरी । "सच्चं चेव सीलसुंदरी तुम"ति, भणिऊण दिण्णाणि चूडामणि-तिलयकुंडल-हार-अद्ध हार-पालंब-अंगय-तुडिय-कंकण-मुद्दा-हंसग[प]मुहाणि वराहरणाणि । कया सयलघर-सामिणी । एवं सीलसामत्थेण सा संपयं पाविया ता जहा तुम पि पाविहसिन संदेहो कायव्वो।" एवं भणिय-जावज्ज वि न विरमइ चंदसिरि ताव निसुओ जिण-गुणुकित्तणमणोरमो जिणमंदिरे सद्दो । चंदसिरीए भणियं-"पियसहि ! कस्स वि सद्दो जिण-भवणे सुणिज्जइ । एहि गच्छामो । मा कयाइ कोइ अतिही होज्ज । तहेव गयाओ । दूरट्ठियाहिं चेव दिट्टो असाहारणगुणेहिं जिण-संथवं कुणतो अहिणवजोव्वणो एगो पुरिसो । कहकप्पपायव-सयल-लोयस्स पणयामर-सिर-मउड-कोडि-कोडि-संघद्व-पय-जुय, । करुणामय-मय-मयरहर-विय-कमल-बोहण-दिवायर, ।। सरयचंद-चंदिम-चरिय, तिहुयण-कय-पय-सेव । भवि भवि सामिय तुहुं सरणु, महु चंदप्पहदेव ! ॥५१९।। दीणु दुत्थिउ विहल-ववसाउ, संसार-भय-भीय-मणु परिभमंतु भवगहणि दुत्तरि । कह-कह वि संपत्तु हउँ पुण्णवसिण तुह चलणगोयरि ।। संपइ करुणिम करिवि जिणहिव किज्जउ मह तत्ति । मण फिट्टइ [मह] हिअअह वि, पहु तुह चलहिं
. भत्ति ।।५२०।। चंद-निम्मल देह-दम-सार संसार-सागर-पडिय-भविय-सत्थ-पवहण निरजण । जयपायड-अतुलबल वीयराय करुणिम-पयासण ।। सरणागय-वच्छल छलियमोहमहागय देव । तिहुयणसिरि-सिरिसेहरह मज्झु तुहारिय सेव ।।५२१॥ सरय-पुण्णिम-पुण्ण-ससि-वयण इंदीवर-दल-नयण मसिण-कसिण-सुसिणिद्ध-कुंतल । बिबाहर-हसिय-सिय धवल-कित्ति-धवलिय-दियंतर ।। कंबुग्गीव विसाल-भुय, सिरिवच्छंकिय-वच्छ । सामिय पविरल दिट्ठ मई महियलि तुम्ह-सरिच्छ ।। ५२२।। सक्क-संथुय पणय-सुर-रमणि, सुह-घुसिण-रंजिय-चलण, चलिर-चमर-चंगिम-सुरेहिर । महसेण-वर-राय-सुअ सुर-विदिण्ण-सिंहासणट्ठिय ।। सामिय सोहइ तव्वुपरि, वरपायवु कंकेल्लि । निल्लक्खणु मइं दय करिवि, पहु निय-करह म मेल्लि ।।५२३।। कोह-फंसण माण-निम्महण मायग्गि-धण-घण-वरिस, लोह-सेल-दंभोलि-सन्निह । जयभसण गरिम-जिय-तियस-सेल ससि-सोम-दंसण ।। कुंद-कलिय-सिअ-सम-दसण, दुल्लह-दसण देव । भवि भवि होउ अखंड महु, चंदप्पह तुह सेव ।।५२४।। विमल-केवल-दसणालोयनिन्नासिय-भवियजण-मण-निलीण-अण्णाण-तम-भर । भरहाहिव-नय-चलण, चवल-करण-हय-पसर-भजण ।। सिरि महसेण-नरिंद-सुय, विहिय-सुरासुर-सेव । तुह चलणग्गि विलग्गु हउं, चंदप्पह जिणदेव ।।५२५।। देव निरुवम-रूव-सोहग्ग लायण्ण-निहि निक्कलंक गय-नेह-बंधण । सचराचर-जीव-हिय, अमय-वयण-निव्वविय-तिहुयण ।। कुमुण्णय लक्खण-कलिय, पुण्णिम-ससि-सम-छाय । आसंसारु वि सरणु मह, चंदप्पह तुह पाय ।।५२६।।
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