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और संगठित रूप प्रदान किया। उनके परवर्ती आचार्यों ने भी यह परम्परा चालू रखी। समस्त श्वेताम्बर जैन समाज खरतरगच्छ के इस अद्भुत प्रयोग से प्रभावित है, इसका जीवन्त साक्ष्य यह है कि सम्पूर्ण श्वेताम्बर जैन समाज में आज जितने गोत्र प्रचलित हैं उनमें से ८० प्रतिशत से अधिक जिनदत्तसूरि व उनकी परम्परा द्वारा स्थापित किए गए हैं - चाहे वर्तमान में वे किसी भी आम्नाय से जुड़े हों। विभिन्न मत-मतान्तरों के बीच भी श्वेताम्बर समाज को यह एक सूत्र आज भी बाँधे हुए है।
मानव जीवन के अन्य सभी पहलुओं के समान ही इस गच्छ ने भी अनेक उतार-चढाव देखे हैं। इतिहास की इस यात्रा के अनेक साक्ष्य अनेक स्थानों पर बिखरे पड़े हैं। गच्छों के इतिहास लेखन की इस कडी में उन बिखरे साक्ष्यों को एक स्थान पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। किन्तु यह कार्य किसी एक व्यक्ति के लिए एक सीमित काल परिधि में कर पाना संभव नहीं है। इसी तथ्य से प्रेरित हो इस इतिहास को भविष्य के शोधार्थियों को ध्यान में रख कर संयोजित किया गया है।
___ खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली के आधार पर आरम्भ किये गए इस इतिहास में पुस्तक के विद्वान् संपादकों ने अन्य अनेक उपलब्ध ग्रन्थों से तो सामग्री संकलित की ही है, साथ ही अन्य अनेक स्रोतों से भी महत्वपूर्ण साक्ष्य व सामग्री एकत्र की है। प्राकृत भारती अकादमी के निदेशक साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागर ने इस योजना की धुरि के रूप में दीर्घकालीन अथक परिश्रम से इतिहास के अन्य साक्ष्यों तथा इतिहास मर्मज्ञ स्व० श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा संकलित ऐतिहासिक सूत्रों के आधार पर इस इतिहास को समृद्ध व प्रामाणिक बनाया। डॉ० शिवप्रसाद ने इस कार्य में यथा संभव सहयोग प्रदान किया। खरतरगच्छ के इतिहास के इस वितान में सामाजिक व सांस्कृतिक सूचनाओं एवं विशिष्ट व्यक्तियों व घटनाओं का भी रोचक व शिक्षाप्रद वर्णन सम्मिलित किया गया है। खरतरगच्छ से संबंधित विविध सूचना सामग्री के इस विशाल संकलन को सहजगम्य बनाने के लिए प्रथम भाग में चार विशेष परिशिष्ट दिये गये हैं जिनमें अकारान्त क्रम में सूचियाँ दी गई हैं।
इस योजना को क्रियान्वित व सम्पन्न करने के लिए हम इसके मनीषी संपादकों के प्रति आभार प्रकट करते हैं। साथ ही विभिन्न संस्थाओं, स्थानीय संघों व व्यक्तिगत दानदाताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने श्रद्धेय साधु-साध्वियों की प्रेरणा से इस प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया है।
हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रन्थ पाठकों के लिए रोचक व शिक्षाप्रद सिद्ध होगा और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी तथा प्रेरक भी।
मंजुल जैन __ संयुक्त प्रकाशक एवं सहयोगीगण
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ट्रस्ट
देवेन्द्र राज मेहता
संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी
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