________________ महोपाध्याय विनयसागर 'खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास' न केवल अतीत के इतिहास की गरिमापूर्ण प्रस्तुति है वरन् यह ग्रन्थ स्वयं इतिहास की धरोहर बन चुका है। खरतरगच्छ का एक हजार वर्ष का लम्बा इतिहास किसी प्राची से उदित सूर्य की कहानी की तरह है। आचार्य जिनेश्वरसूरिजी से प्रारम्भ हुई यह सुदीर्घ यात्रा आज तक अविच्छिन्न रूप से चल रही है। इतिहास किसी का भी क्यों न हो, उसे उतार-चढ़ाव के हर गलियारे से गुजरना ही पड़ता है खरतरगच्छ भी इतिहास के इसी सत्य से गुजरते हुए अपनी ज्ञान मनीषा और सच्चरित्रता का उपयोग करता रहा है। खरतरगच्छ का वट वृक्ष तो अत्यन्त विशाल रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ उस विराटता को देखने की एक खुल चुकी आँख है। आकाश कितना भी विस्तृत क्यों न हो पर छोटी सी आँख से भी इसका बहुत बड़ा हिस्सा अवलोकन किया जा सकता है। प्रस्तुत ग्रन्थ को हम खरतरगच्छ की आँख ही समझें। कोई भी इतिहासकार इतिहास के अनन्त को तो नहीं छू सकता पर इतिहास के सागर के तट पर तो हमें खड़ा कर ही सकता है। महोपाध्याय विनयसागरजी ने अथक परिश्रम करते हुए इस ग्रन्थ के माध्यम से हमें खरतरगच्छ के इतिहास के सागर के किनारे उपस्थित होने का, सागर को समझने और उसकी गहराईयों को जानने का अनमोल अवसर प्रदान किया है। यदि वर्तमान अपने अतीत के प्रकाश की डोर थामने में सफल होता है तो भविष्य भी उतना ही सुन्दर और स्वर्णिम हुआ करता है, जितना की वह कभी अतीत में रहा। -महोपाध्याय ललितप्रभ सागर in Education international 2010-04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org