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प्रथम परिशिष्ट
खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास-गत आचार्य-साधु-साध्वियों की नाम सूची
अकलंकदेवसूरि [पूर्णिमागच्छ०]
१२५
३३४
८७,८८ ८९, अजितसेन ९०, ९१, ९२ अणदु [क्षेम०] ३११ अणदोजी [आद्य०]
अनंतकीर्ति [दिग०] ३०१ अनन्तलक्ष्मी ३११ अनन्तश्री
२९१ अनन्तहंस ९, १५९ अनुभव श्री
३१८ अनूपचन्द्र [जिनचन्द्रसूरि] १२८ अभयकुशल [कीर्तिरत्न०]
अभयचन्द्र ३६ अभयचन्द्र [लघु०] ६२, ४०१ अभयचन्द्र [कीर्तिरत्न०]
अक्षयचंद [जिनाक्षयसूरि] अक्षयनिधान [आचार्य शा० जिनचन्द्रसूरि] अक्षयसमुद्र [जिनरंग०] अगरचन्द [आद्य०] अगस्त्य [ऋषि] अंचलगच्छ अचलचित्त अजित अजितदेवसूरि अजितश्री
२९२ ३१८ १३१ ४०३ २२२
४२१
२४५
३५१
५४, १२५
२६७
३५०,३५१
|संकेताक्षर-सूचन [ मु०-मुनि, ग०=गणि, वा०=वाचक, वाचनाचार्य, पा०=पाठक, महो०=महोपाध्याय, अन्य ग०=अन्यगच्छीय, सा० साध्वी, ग०=गणिनी, मह० महत्तरा, प्रव०=प्रवर्तिनी, मधु० मधुकर शाखा, रुद्र० रुद्रपल्लीय शाखा, लघु०-लघु खरतर शाखा, आद्य०=आद्यपक्षीय शाखा, बेगड़-बेगड़ शाखा, पिप्पलक०-पिप्पलक शाखा, भाव०=भावहर्षीय शाखा, आचार्य० आचार्य शाखा, जिनरंग०=जिनरंगसूरि शाखा, मण्डो० मण्डोवरी शाखा, दिग्मम् = दिग्मण्डलाचार्य शाखा, सागरचन्द्र ०=सागरचन्द्र सूरि शाखा, क्षेम० = क्षेमकीर्ति शाखा, जिनभद्र०=जिनभद्रसूरि शाखा, कीर्तिरत्न० कीर्तिरत्नसूरि शाखा, दिग०-दिगम्बर। ]
(४२६)
परिशिष्ट-४
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