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________________ था। वि०सं० १९९२ आषाढ़ सुदि ३ को लोहावट में प्रवर्तिनी श्री शिवश्री जी महाराज के समुदाय की पूर्व प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्री जी की शिष्या बनी थीं। दीक्षा नाम विद्वान्श्री रखा गया। वर्तमान में आप प्रवर्तिनी पद को सुशोभित कर रही हैं। आपकी निश्रा में भी निपुणाश्री आदि १०-१२ साध्वियों का समुदाय है। श्री निपुणाश्री इनका जन्म वि०सं० १९८२ भाद्रपद वदि तेरस को पादरा में हुआ। इनके पिता का नाम सोमाभाई अमृतलाल शाह एवं माता का नाम जासु बहन था। विक्रम संवत् २०१२ आषाढ़ सुदि तेरस को धूलिया में दीक्षा ग्रहण कर प्रवर्तिनी वल्लभश्री जी महाराज की शिष्या बनीं। दीक्षा नाम निपुणाश्री रखा गया। अच्छी विदुषी और उपदेष्य हैं अभी आप छत्तीसगढ़ प्रान्त में विचरण कर रही हैं। इस प्रकार खरतरगच्छ की सुखसागर जी महाराज की परम्परा में ख्याति प्राप्त पुण्यश्री मंडल और शिवश्री मंडल में लगभग २५० साध्वियाँ खरतरगच्छ और जिनशासन का गौरव बढ़ाती एवं अपने प्रवचनों के माध्यम से जनमानस को झंकृत करती हुई देश के सभी भागों में विचरण कर रही हैं। (श्री महेन्द्रप्रभाश्री श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी महाराज के समुदाय में दीक्षित होने पर भी इस समुदाय का कोई साधु न रहने के कारण निम्नांकित साध्वीवर्ग पूर्व में मुनिश्री जयानन्दमुनिजी महाराज की आज्ञानुवर्ती रहा और अब गणाधीश उपाध्याय श्री कैलाशसागरजी महाराज की आज्ञानुवर्ती हैं। श्री महेन्द्रप्रभाश्री का जन्म १ सितम्बर, सन् १९४० को हुआ। कोहाट बन्नु निवासी सुराणा गोत्रीय लाल हेमराजजी और धनवन्ती बाई उनके पिता-माता थे। सन् १९५८ में रतलाम में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और महेन्द्रप्रभाश्री नाम प्राप्त किया। इनकी गुरुवर्या का नाम श्री त्रिलोकश्रीजी था। बहुत ही शान्त प्रकृति की और निश्छल हृदया हैं। शिष्याओं को सर्वोच्च शिक्षा दिलाने में इनका प्रमुख हाथ रहा है। डॉ० (साध्वी) लक्ष्यपूर्णाश्री - १४ नवम्बर, सन् १९५९ खीमेल में इनका जन्म हुआ। माता का नाम धापुबाई और पिता का नाम हेमराजजी मेहता था। जन्म नाम लीला मेहता था। सन् १९७८ में दीक्षा ग्रहण कर लीला से लक्ष्यपूर्णाश्री बनी। श्री महेन्द्रप्रभाश्रीजी कि प्रमुख शिष्या हैं। जैन प्राकृत आगमों में स्याद्वाद नय और सप्तभंगी का समीक्षात्मक अध्ययन विषय पर शोध प्रबन्ध लिखकर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। दर्शनाचार्य की परीक्षा में भी स्वर्णपदक प्राप्त किया था। सरलहृदया व विदुषी हैं। श्वेताञ्जनाश्री एम. ए. आपकी शिष्या हैं, जिन्होंने कि सन् १९९८ में दीक्षा ग्रहण की थी। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (४२५) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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