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२. प्रवर्तिनी श्री शिवश्रीजी का समुदाय
श्री उद्योतश्रीजी महाराज की प्रशिष्या एवं श्री लक्ष्मीश्रीजी की शिष्या श्री शिवश्रीजी महाराज थीं। इनका दूसरा नाम सिंहश्रीजी भी मिलता है। इनका जन्म विक्रम संवत् १९१२ में फलौदी में हुआ था। पिता का नाम लालचन्द्रजी और माता का नाम अमोलक देवी था। जन्म नाम आपका शेरू था। बाल्यावस्था में ही वैधव्यावस्था प्राप्त हो गई थी। संवत् १९३२ अक्षय तृतीया को दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा नाम शिवजी रखा गया। विक्रम संवत् १९६५ पौष सुदि १२ को अजमेर में आपका स्वर्गवास हुआ।
आपका साध्वी समुदाय विशाल होने के कारण आपके नाम पर ही 'शिवश्रीजी का समुदाय' के नाम से प्रसिद्ध है। आपने अनेक महिलाओं एवं कन्याओं को दीक्षा दी। उन सबके नाम प्राप्त नहीं है, किन्तु आपकी सात शिष्याएँ प्रसिद्ध हैं :१. प्रतापश्री २. देवश्री ३. प्रेमश्री
४. ज्ञानश्री ५. वल्लभश्री ६. विमल श्री
७. प्रमोदश्री इन प्रसिद्ध सात शिष्याओं में से पाँच शिष्याएँ प्रवर्तिनी पद को सुशोभित कर चुकी हैं, उनका परिचय क्रमशः इस प्रकार है :
((१) प्रवर्तिनी श्री प्रतापश्री)
आपका जन्म पौष सुदि १० वि०सं० १९२५ को फलौदी में हुआ। लुंकड़गोत्रीय सुकनचन्द जी एवं सुकन देवी आपके माता-पिता थे। आपका जन्मनाम आसीबाई (ज्योति बाई) था। १२ वर्ष की अल्पायु में सूर्यमल्ल जी झाबक के साथ आपका विवाह हुआ था किन्तु आप शीघ्र ही सौभाग्यसुख से वंचित हो गयीं। वि०सं० १९४७ मार्गसिर वदि १० को आपकी दीक्षा हुई और शिवश्री जी की प्रधान शिष्या बनीं और नाम प्रतापश्री जी रखा गया। शिवश्री जी के स्वर्गवास के पश्चात् इन्हें प्रवर्तिनी पद प्राप्त हुआ। वि०सं० १९९७ में आपका फलौदी में स्वर्गवास हुआ।
द्वादशपर्वव्याख्यान, चैत्यवंदन-स्तुति-चतुर्विंशति, आनन्दघनचौबीसी आदि अनेक ग्रंथ आपकी प्रेरणा से प्रकाशित हुए। आप द्वारा दीक्षित चैतन्यश्रीजी आदि १२ साध्वियाँ थीं, किन्तु इनकी शिष्याओं में वर्तमान समय में श्री दिव्यश्री ही विद्यमान हैं। वे फलौदी निवासी और झाबक गोत्रीय हैं। वि०सं० १९९६ माघ सुदि ३ को फलौदी में इनकी दीक्षा हुई थी। कई वर्षों की अस्वस्थता के कारण खड़गपुर (बंगाल) में स्थिरवास कर रही हैं।
(२) प्रवर्तिनी श्री देवश्री
वि०सं० १९२८ में फलौदी में आपका जन्म हुआ था। वैधव्य के पश्चात् इन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली। प्रवर्तिनी प्रतापश्री जी म० के स्वर्गवास के पश्चात् सं० १९९७ माघ वदि १३ को इन्हें प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। इनका निधन वि०सं० २०१० भाद्रपद वदि १३ को फलौदी में हुआ। हीराश्री जी आदि कई विदुषी साध्वियाँ आपकी शिष्यायें थीं।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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