________________
७. प्रवर्तिनी श्री तिलकश्री )
आप का जन्म वि०सं० १९८२ आषाढ़ सुदि १० को पादरा (गुजरात) में हुआ। जन्मनाम तारा कुमारी था। श्रीमाल छजलानी गोत्रीय मोतीलाल जी एवं लक्ष्मीबहन इनके माता-पिता थे। वि०सं० १९९६ फाल्गुन वदि २ को अणादरा में विचक्षणश्री जी के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा नाम तिलकधी रखा गया। अभी आप प्रवर्तिनी पद की शोभा बढ़ा रही हैं। आप मिलनसार और अच्छी विदुषी हैं। अस्वस्थता के कारण अभी आप अहमदाबाद में स्थिरवास कर रही हैं। प्र० पुण्यश्रीजी मंडल की आप प्रमुख हैं।
जैन शासन के प्रचार-प्रसार में अत्यन्त विचक्षण एवं व्यवहारकुशल स्व० श्री विचक्षणश्री जी का शिष्या-प्रशिष्या मंडल अत्यधिक विशाल होने से विचक्षणमंडल के नाम से विख्यात है। इस मंडल की प्रमुख शिष्याओं के नाम इस प्रकार हैं१. श्री विनीताश्री
२. श्री चन्द्रकलाश्री
३. श्री चन्द्रप्रभाश्री ४. श्री मनोहरश्री ५. श्री सुरंजनाश्री
६. श्री मणिप्रभाश्री इन सब का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
श्री विनीताश्री
इनका जन्म वि०सं० १९८३ वैशाख वदि ४ को पादरा में हुआ। आपका जन्मनाम विद्याकुमारी था। इनके माता-पिता श्रीमाल छजलानी गोत्रीय चम्पाबहेन और मोतीलाल शाह थे। वि०सं० १९९६ फाल्गुन वदि २ को अनादरा में दीक्षा ग्रहण कर विचक्षणश्री जी की शिष्या बनीं और विनीताश्री नाम प्राप्त किया। आप अत्यन्त सरल हृदय हैं और आजीवन गुरु की सेवा में संलग्न रही हैं। आप अभी ५ साध्वियों के साथ विचरण कर रही हैं।
चन्द्रकलाश्री
इनका जन्म वैशाख शुक्ला १ सं० १९९१ को मुलतान में हुआ। आपका जन्म नाम लाजवन्ती कुमारी था। नाहटा गोत्रीय सरस्वती बाई और धनीराम इनके माता-पिता थे। वि०सं० २००९ फाल्गुन सुदि ५ को छापीहेड़ा में प्रवर्तिनी विचक्षणश्री की शिष्या बनकर चन्द्रकलाश्री नाम प्राप्त किया। आप अत्यन्त सरलमना और उदारता की प्रतीक हैं। सुलोचनाश्री जी आदि ४ साध्वियों के साथ मालपुरा दादावाड़ी की प्रतिष्ठा में आप सम्मिलित हुई थीं।
(४१६)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org