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श्रमणीसंघ में मात्र ४-५ विदुषी साध्वियों का उल्लेख प्राप्त होता है। श्री अगरचन्दजी नाहटा ने नारी शिक्षा का अभाव इसका प्रमुख कारण बतलाया है, जो सत्य प्रतीत होता है।
वर्तमानयुग में नारी शिक्षा के उत्तरोत्तर प्रचार के कारण श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों की सभी शाखाओं में आज अनेक विदुषी साध्वियाँ हैं जो तपश्चरण के साथ-साथ स्वाध्याय में भी समान रूप से रत हैं। खरतरगच्छ में विभिन्न विदुषी साध्वियाँ हो चुकी हैं और आज भी ऐसी विदुषी साध्वियाँ हैं जो अपनी विद्वत्ता के कारण ही प्रसिद्ध हैं। वस्तुतः नारी शिक्षा के प्रचार के कारण मध्यकाल की अपेक्षा आज खरतरगच्छ ही नहीं वरन् सम्पूर्ण जैन श्रमणीसंघ का भविष्य उज्ज्व ल है।
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१. अगरचन्द नाहटा, 'कतिपय विदुषी कवित्रियां', चन्दाबाईअभिनन्दनग्रन्थ (आरा, विहार १९५४, पृ० ५७०)
और आगे। २. वही, पृ० ५७३
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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