________________
आप चारित्रपात्र साधु और पदलिप्सा से पूर्णतः रहित हैं। आपने अपने साधु जीवन में २०२१ से २०५८ तक कच्छ, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रान्तों के विभिन्न नगरों में अंजनशलाकायें, प्रतिष्ठायें एवं नूतन दादावाड़ियों का निर्माण कराया। माघ सुदि १० सं० २०५८ को मालपुरा की प्रतिष्ठा भी आपके सानिध्य में सम्पन्न हुई है। आपकी निश्रा में सिवाणा, इन्दौर, जयपुर और ओसिया में उपधान तप भी सम्पन्न हुए हैं। अपने कर-कमलों से २ पुरुष और ५ महिलाओं को साधु-साध्वी की दीक्षा प्रदान की।
आपके प्रथम शिष्य श्री कुशलमुनि हैं जो गोलेछा गोत्रीय एवं जयपुर के निवासी रहे।
卐卐
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
(३९७)
_Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org