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________________ चरित्र, सं० १९९८ में २०१ श्लोकों में मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि चरित्र एवं सं० २००५ में ४६८ श्लोकमय श्री जिनदत्तसूरि चरित्र काव्य की रचना की। सं० २०११ में श्री जिनरत्नसूरि चरित्र, २०१२ में जिनयश: सूरि चरित्र, सं० २०१४ में जिनऋद्धिसूरि चरित्र, सं० २०१५ में श्री मोहनलाल जी महाराज का जीवन चरित्र श्लोकबद्ध लिखा । इस प्रकार आपने नौ ऐतिहासिक काव्य रचने का अभूतपूर्व कार्य सम्पन्न किया । इनके अतिरिक्त आपने २००१ में आत्मभावना, २००५ में द्वादश पर्वकथा, चैत्यवन्दन चौबीसी, वीसस्थानक चैत्यवन्दन, स्तुतियाँ और पाँच पर्व स्तुतियों की भी रचना की । सं० २००७ में संस्कृत भाषा में सुसढचरित्र काव्य, सं० २००८ में सिद्धाचलजी के १०८ खमासमण भी श्लोकबद्ध बनाये । आपने जैन मन्दिरों, दादावाड़ियों और गुरु चरण- मूर्तियों की अनेक स्थानों में प्रतिष्ठा कराई। सं० २०१३ में कच्छ मांडवी की दादावाड़ी का माघ वदि २ के दिन शिलारोपण कराया। सं० २०१४ में निर्माण कार्य सम्पन्न होने पर श्री जिनदत्तसूरि मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई और धर्मनाथ जिनालय के पास खरतरगच्छोपाश्रय में श्री जिनरत्नसूरि जी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई । सं० २०१९ में कच्छ भुज की दादावाड़ी में सं० हेमचंद भाई के बनवाये हुए जिनालय में संभवनाथ भगवान् आदि जिनबिम्बों की अंजनशलाका करवाई । और भी अनेक स्थानों पर गुरु महाराज और श्री जिनरत्नसूरि जी के साथ प्रतिष्ठादि शासनोन्नति के कार्यों में बराबर भाग लेते रहे । ढ़ाई हजार वर्ष प्राचीन कच्छ देश के सुप्रसिद्ध भद्रेश्वर तीर्थ में आपके उपदेश से श्री जिनदत्तसूरि आदि गुरुदेवों का भव्य गुरु मन्दिर निर्मित हुआ, जिसकी प्रतिष्ठा आपके स्वर्गवास के पश्चात् बड़े समारोह पूर्वक गणिवर्य श्री प्रेममुनि व श्री जयानंदमुनि के कर-कमलों सं० २०२६ वैशाख सुदि १० को सम्पन्न हुई। उपाध्याय श्री लब्धिमुनि बाल- ब्रह्मचारी, निरभिमानी, शान्त - दत्त और सरल प्रकृति के दिग्गज विद्वान् थे। वे ६५ वर्ष पर्यन्त उत्कृष्ट संयम साधना करके ८८ वर्ष की आयु में सं० २०२३ में कच्छ मोटा आसंबिया गाँव में स्वर्ग सिधारे । ६. गणिवर्य श्री बुद्धिमुनि दर्शन ज्ञान चारित्र की साकार मूर्ति, उत्कृष्ट संयमी श्री बुद्धिमुनि का जन्म जोधपुर राज्यान्तर्गत गंगाणी तीर्थ के समीपवर्ती बिलारे गाँव में हुआ था । चौधरी (जाट) वंश में जन्म लेकर भी पूर्व जन्म कृत पुण्य संयोगवश आपने जैनदीक्षा ग्रहण की। आपके मस्तक पर से पिता का साया तो बाल्यकाल में ही उठ गया था और माता ने भी अपना अन्तिम समय जानकर इन्हें एक मठाधीश महन्त को सौंप दिया था। वहाँ रहते समय सुयोग वश पंन्यासजी श्री केशरमुनि का सत्समागम पाकर आप में जैन मुनि दीक्षा लेने की भावना जागृत हुई। पंन्यासजी के साथ पद यात्रा में जब आप लूणी जंक्शन के पास आये तो सं० १९६३ में ९ वर्ष की अल्पायु में आप दीक्षित हुए । जन्म नाम नवल से बदल कर (३९४) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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