SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०) गणाधीश श्री त्रैलोक्यसागर जैसलमेर राज्यान्तर्गत गिरासर निवासी, जीतमल जी पारख की धर्मपत्नी कुलणादेवी की कोख से सं० १९१८ श्रावण शुक्ल १४ को आपका जन्म हुआ, आपका जन्म नाम चुन्नीलाल था। अपनी बड़ी बहिन पन्नी बाई (पुण्यश्री जी) के प्रयत्न से आपने आबाल ब्रह्मचर्य व्रत लिया और सं० १९५२ ज्येष्ठ सुदि ७ के दिन गणाधीश्वर श्री भगवानसागर जी महाराज के पास भागवती दीक्षा लेकर त्रैलोक्यसागर जी नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० १९५५ माघ सुदि १३ को फलौदी में आपकी बड़ी दीक्षा हुई। सं० १९६६ में श्री छगनसागर जी महाराज का स्वर्गवास होने पर अपने बड़े गुरुभ्राता श्री सुमतिसागर जी का आदेश प्राप्त कर आप गणाधीश हुए। सं० १९६९ में ५ मुनि व १६ साध्वियों के साथ राय बहादुर श्री केशरीसिंह जी बाफना के आग्रह से कोटा नगर में चातुर्मास किया। श्री ज्ञान सुधारस धर्म सभा की स्थापना की। पराशली तीर्थ यात्रा के हेतु डग, गंगधार और सीतामहू से तीन संघ निकलवाये। सं० १९७० में श्री विमलश्री जी के प्रयत्न से जैसलमेर का संघ निकलवाया। संघ सहित अनेक तीर्थों की यात्रा की। सुजानगढ़ प्रतिष्ठा व नवम जैन श्वे० कान्फ्रेंस में शामिल हुए। सं० १९६८ में वीरपुत्र आनंदसागर जी को रतलाम में दीक्षित किया। लोहावट में श्री छगनसागर जैन पाठशाला खुलवाई। सं० १९७३ में बीकानेर चातुर्मास किया। तब तक ४ मुनिराज और ५३ साध्वियों की दीक्षा हुई थी। सं० १९७४ श्रावण शुक्ल १५ को आप लोहावट में स्वर्गवासी हुए। सं० १९७४ में वीरपुत्र आनंदसागर जी महाराज लिखित पुस्तक सुखचरित्र प्रकाशित हुआ। उसमें लिखा है कि श्री सुखसागर जी महाराज के समुदाय में आज तक ३२ साधु हुए जिनमें १६ मुनिवर कालधर्म प्राप्त हुए। ३ वेश त्याग कर चले गए या यति हो गए। उस समय १३ विद्यमान थे। तथैव आपके संघाड़े में १७६ साध्वियाँ हुईं, जिनमें ३१ कालधर्म प्राप्त हुईं और १४५ (उस समय) विद्यमान रहीं। ((११) आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरि) आपका जन्म नागौर परगने के रोहिणा गाँव में जमींदार झूरिया जाट हनुमन्तसिंह की धर्मपत्नी केसर देवी के कोख से सं० १९४९ में मिगसर सुदि ७ को हुआ। गणाधीश्वर भगवानसागर जी के आप भतीजे थे। पाँच भाईयों में मध्यम होनहार हरिसिंह को श्री हनुमंतसिंह जी ने गणाधीश को भेंट किया। गुरु महाराज की आज्ञानुसार सं० १९५७ आषाढ़ कृष्णा ५ के दिन महातपस्वी श्री छगनसागर जी महाराज ने समारोह पूर्वक दीक्षित कर गणाधीश्वर भगवानसागर जी के शिष्य हरिसागर जी नाम से उद्घोषित किया। सं० १९५७ से ६५ तक स्थविर तपस्वी जी के सानिध्य में लोहावट और (३६०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy