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________________ इस प्रकार हम देखते हैं कि महोपाध्याय शिवचन्द्र जी की शिष्य परम्परा अब लुप्त अवश्य हो गई है, किन्तु आमेर का चन्द्रप्रभ मन्दिर, नन्दीश्वर द्वीप की रचना, नन्दीश्वर द्वीप की पूजा और अन्य विशिष्ट रचनाओं के कारण उनका नाम और कीर्ति आज भी सुरक्षित है और शताब्दियों तक विद्यमान रहेगी। * * * क्षेमकीर्ति की परम्परा में २०वीं शताब्दी में हुए कुशलनिधान के शिष्य महोपाध्याय ऋद्धिसार (रामलाल) वैद्यकशास्त्र में अपने समय के श्रेष्ठ विद्वानों में से थे। नाड़ीवैद्य के रूप में इनकी अत्यधिक प्रतिष्ठा रही है। इन्होंने विभिन्न विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इनके द्वारा रचित वैद्यदीपक नामक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है। इनके द्वारा रचित दादागुरुदेव की पूजा (वि०सं० १९५३) इनकी प्रसिद्धतम कृति है। जहाँ भी दादागुरु की पूजा होती है, इसी का पाठ किया जाता है। इसकी अब तक लाखों प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। खरतरगच्छीय दीक्षा नंदी सूची के अनुसार इनकी गुरु- ।। परम्परा इस प्रकार है हेमप्रमोद→ रंगविमल→ नेमिमूर्ति→ क्षेममाणिक्य-विनयभद्र→ लब्धिहर्ष→ धर्मशील→ कुशलनिधान→ महो०रामलाल (ऋद्धिसार)→ बालचन्द * * * क्षेमकीर्ति शाखा में दीपक की अंतिम लौ के समान नीतिसागर जी हैं। इनका जन्म नाम नेमिचन्द था। वि०सं० १९८३ में जिनचारित्रसूरि ने इन्हें दीक्षा देकर शान्तिसौभाग्य का शिष्य घोषित किया था। बड़ा उपासरा बीकानेर की सुरक्षा और देखभाल करने वालों में ये अकेले व्यक्ति हैं। जिनविजयेन्द्रसूरि के समय से बीकानेर की गद्दी के कोतवाल रहे हैं। * * * रचना प्रशस्तियाँ, लेखन-पुष्पिकाओं एवं हस्तलिखित त्रुटक पत्रों के आधार पर क्षेमकीर्ति की अनेक विद्वत् शिष्य परम्परायें प्राप्त हैं किन्तु उन परम्पराओं में से केवल चार शिष्य-परम्पराओं के विशेष नामोल्लेख प्राप्त होते हैं, जो निम्न हैं :पहली परम्परा : १. श्री जिनकुशलसूरि जी ५. उ० तपोरत्न गणि २. उ० विनयप्रभ गणि६ . उ० भुवनसोम गणि ३. उ० विजयतिलक गणि ७. उ० साधुरंग गणि ४. उ० क्षेमकीर्ति गणि ८. उ० धर्मसुन्दर गणि (३३१) संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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