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१. आचार्य के नाम से - आचार्य कृष्णर्षि के नाम से कृष्णर्षिगच्छ; पार्श्वचन्द्रसूरि के नाम से पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ। २. आचार्यों के विचारभेद/मान्यताभेद से भी गच्छों की उत्पत्ति हुई है। जैसे :- अंचलगच्छ, पूर्णिमागच्छ, सैद्धान्तिक गच्छ, द्विवन्दनीकगच्छ, त्रिस्तुतिगच्छ आदि गच्छ। ३. ग्रामों के नाम से - उपकेशपुर से उपकेशगच्छ, कोरटा से कोरंटागच्छ, पाली से पल्लीवालगच्छ, भीमपल्ली (भीलड़ी) से भीमपल्लीगच्छ, रुद्रपल्ली से रुद्रपल्लीगच्छ, सांडेराव से संडेरकगच्छ, जीरापल्ली से जीरापल्लीगच्छ, नागपुर से नागौरीगच्छ, हस्तिकुण्डी से हस्तिकुण्डीगच्छ, निम्बाज से निम्बाजगच्छ आदि। ३. गोत्र के नाम से - प्रसिद्ध आचार्य के गोत्र से अथवा उनके अनुयायिओं के गोत्र से भी कुछ गच्छों का उद्भव हुआ है। जैसे - रांका गोत्र (श्री पूरणचन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह के आधार से), रांकागच्छ, हुम्बड़ गोत्र से हुम्बड़गच्छ आदि। उक्त गच्छों के नामों पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि -
क्रमांक ४ उपकेशगच्छ की पुनरावृत्ति क्रमांक ५६ पर हुई है। क्रमांक ३१ उकेश उपकेश का ही नाम है। इसी प्रकार क्रमांक ३८ कमलागच्छ भी उपकेशगच्छ का ही नाम है।
क्रमांक १३ वडगच्छ से निश्रित तपागच्छ है और क्रमांक ३३. तपागच्छ की शाखाएँ और उपशाखाएँ निम्न हैं- ४७. तपागच्छ वृद्ध पौषालिक ४८. तपा गच्छ विजयदेवसूरि गच्छ ४९. तपा गच्छ विजयदेवसूरि गच्छ ५० तपा गच्छ आनन्दसूरि गच्छ ५१. सागर गच्छ ५८. वृद्ध तपा गच्छ ६३. कमलकलश गच्छ ९९. निगमप्रभावक गच्छ।
क्रमांक ४४ बृहद् खरतरगच्छ की निम्न शाखाएँ हैं- ४३. लघु खरतर गच्छ ४५. पिप्पलक खरतर गच्छ ४६. खरतरगच्छ मधुकरा शाखा, ७७. खरतरगच्छ वेगडशाखा ८७. महुकर गच्छ।
क्रमांक १७. नाणावल गच्छ और क्रमांक ६८. नाणकीय गच्छ एक ही है।
क्रमांक २५. जीराउला गच्छ और क्रमांक ८४. हीरापल्ली गच्छ एक ही प्रतीत होते है। जीरापल्ली के स्थान पर हीरापल्ली लिख दिया गया हो।
चौरासी गच्छ की उद्भव की कल्पना से पूर्व ही निम्न गच्छ विद्यमान थे। जैसे -
क्रमांक १. निर्ग्रन्थ गच्छ २. कोटिक गच्छ ३. वनवासी गच्छ ५. वज्र शाखा गच्छ ६. नागिल गच्छ ८. निर्वृत्तिकुल राजचैत्र गच्छ ९. ब्रह्मद्वीप गच्छ ३६. कृष्णराजर्षि गच्छ ३९. चान्द्र गच्छ ४०. विद्याधर गच्छ ४१. निवृत्ति गच्छ ५२. प्रश्रवाहन कुल आदि।
उक्त सूची में से कई गच्छों के नाम ऐसे है जो कि बहुत बाद में (१६वीं शताब्दी तक) गच्छ के रूप में व्यवहरित हुए हैं, अतः वे अर्वाचीन ही हैं। जैसे -
क्रमांक १९. विधिपक्ष गच्छ २०. सार्ध पूर्णिमा गच्छ (अंचल), खरतरगच्छ एवं उसकी शाखाएँ,
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स्वकथ्य
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