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________________ द्वारा कारित नन्दि महोत्सव में जिनकीर्तिसूरि ने आपकी पदस्थापना की। इनके शिष्य गुणलाभ ने वि०सं० १६५० में जीभरसाल की रचना की। (१०. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि) __ आप भी नवलखा गोत्रीय थे। सं० १६३१ फाल्गुन' सुदि १३ गुरुवार को गोगुंदा (महाराजधानी) नगर में मंत्री खीमा सुत मं० रतनसी द्वारा कारित नन्दि महोत्सवपूर्वक आपकी पदस्थापना हुई और श्री जिनसिंहसूरि जी ने सूरिमंत्र दिया। इनके एक शिष्य राजसुन्दर ने वि०सं० १६६८ में अपने शाखा की गुरुपट्टावलीचउपई की रचना की। सुप्रसिद्ध रचनाकार विनयसागर भी इसी शाखा से सम्बद्ध थे। (११. आचार्य श्री जिनरत्नसूरि) आपका जन्म रांका गोत्र में हुआ था। सं० १६८२ माघ सुदि ५ को अहमदाबाद में नन्दि महोत्सव द्वारा आपका पट्टाभिषेक हुआ। (१२. आचार्य श्री जिनवर्द्धमानसूरि आप नाहटा गोत्र में उत्पन्न हुये थे। सं० १६८८ माघ सुदि ५ सोमवार के दिन अहमदाबाद में नन्दि महोत्सव द्वारा आपका पट्टाभिषेक हुआ। श्री जिनरत्नसूरि जी ने स्वयं आपको आचार्यपद दिया। वि०सं० १७१० में इन्होंने धन्नाऋषिचौपाई की रचना की। (१३. आचार्य श्री जिनधर्मसूरि) सं० १७५७ में आपने आचार्य पद प्राप्त करके, अनेक देश-विदेशों में विहार करके जैन सिद्धान्त का प्रचार तथा प्रसार किया। सं० १७७६ में आप उदयपुर पधारे। वहाँ अन्तिम समय ज्ञात कर वैशाख सुदि ७ को अपने पट्ट योग्य शिवचन्द्र जी को गच्छनायक पद देकर अनशन आराधना पूर्वक स्वर्ग सिधारे। (१४. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि (शिवचन्द्रसूरि) मारवाड़ के भिन्नमाल नगर में भूपति अजितसिंह के राज्य में ओसवाल रांका गोत्रीय साह पद्मसी निवास करते थे, उनकी धर्मपत्नी पद्मा देवी की कोख से सं० १७५० में शुभ मुहूर्त में आपका १. अन्य पट्टावली में मार्गशीर्ष सुदि १०। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२८५) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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