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सुधर्मस्वामी, जम्बूस्वामी, आर्य प्रभव, आर्य शय्यंभव, आर्य सुहस्ति, आर्य भद्रबाहु, आर्य स्थूलभद्र, आर्यमहागिरि, आर्य समुद्र, आर्य भद्रगुप्त, आर्य सिंहगिरि, आर्य वज्र, आर्य रक्षित, वाचक उमास्वाति, आचार्य हरिभद्रसूरि
___ तत्पश्चात् अपनी पूर्व-परम्परा का उल्लेख करते हुए निम्नांकित पट्ट परम्परा के युगप्रधान तुल्य आचार्यों का उल्लेख किया है- देवसूरि > नेमिचन्द्रसूरि > उद्योतनसूरि > वर्धमानसूरि > जिनचन्द्रसूरि > अभयदेवसूरि > जिनवल्लभसूरि। इन आचार्यों के गुण-गौरव का गान करते हुए और इनके गीतार्थ शिष्य-प्रशिष्य परम्परा के आचार्यों का स्मरण किया है।
श्री जिनप्रभसूरि ने प्राभातिक नामावली में युगप्रधान आचार्यों का इस प्रकार उल्लेख किया है
सिद्धार्थ, जंबूस्वामि, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, आर्य सुहस्ति, सिंहगिरि, धनगिरि, आर्यसमित, वैरस्वामि, आर्यरक्षित, दुब्बलिकापुष्यमित्र, घृतपुष्यमित्र, वस्त्रपुष्यमित्र, वज्रसेन, नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृत्ति, उद्देहिक, कोट्याचार्य, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सिद्धसेन दिवाकर, उमास्वाति वाचक, आर्य श्याम वाचक, गोविंद वाचक, रेवती, नागार्जुन, आर्य खपट, यशोभद्रसूरि, मल्लवादी, वृद्धवादी, बप्पहभट्टि, कालकसूरि, शीलांकसूरि, हरिभद्रसूरि, सिद्धर्षि, पादलिप्तसूरि, देवसूरि, नेमिचंद्रसूरि, उद्योतनसूरि, वर्द्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचंद्रसूरि, जिनभद्रसूरि ? ) अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि आदि। पट्ट परम्परा के आचार्य - इस परम्परा में भी श्रुतधर, पूर्वधर, गीतार्थ, श्रेष्ठतम आचार्यों के उल्लेख प्राप्त होते है:- १. भगवान् महावीर > २. आर्य सुधर्म > ३. आर्य जम्बू > ४. आर्य प्रभव > ५. आर्य शय्यंभव > ६. आर्य यशोभद्र > ७. आर्य सम्भूति विजय > ८. आर्य भद्रबाहु > ९. आर्य स्थूलभद्र > १०. आर्य महागिरि > ११. आर्य सुहस्ति > १२. आर्य सुस्थित > १३. आर्य इन्द्रदिन्नसूरि > १४. आर्य दिन्नसूरि > १५. आर्य सिंहगिरि > १६. आर्य वज्रस्वामी > १७. वज्रसेनसूरि > १८. चन्द्रसूरि > १९. समन्तभद्रसूरि > २०. देवसूरि > २१. प्रद्योतनसूरि > २२. मानदेवसूरि > २३. मानतुंगसूरि > २४. वीरसूरि > २५. जयदेवसूरि > २६. देवानन्दसूरि > २७. विक्रमसूरि > २८. नरसिंहसूरि > २९. समुद्रसूरि > ३०. मानदेवसूरि > ३१. विबुधदेवसूरि > ३२. जयानंदसूरि > ३३. रविप्रभसूरि > ३४. यशोभद्रसूरि > ३५. विमलचन्द्रसूरि > ३६. देवसूरि > ३७. नेमिचन्द्रसूरि > ३८. उद्योतनसूरि।
यह परम्परा गुणविनयोपाध्यायकृत गुर्वावली गीत और क्षमाकल्याणोपाध्याय कृत खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह से ली गई है। गुणविनयगणि ने ३४. यशोभद्रसूरि के पश्चात् ३५. जिनभद्रसूरि ३६. हरिभद्रसूरि ३७. देवचन्द्रसूरि ३८. नेमिचन्द्रसूरि ३९. उद्योतनसूरि नाम दिये हैं। शेष पूर्ववत् हैं। इस गुर्वावली में गौतम स्वामी और सुधर्मस्वामी को अलग-अलग क्रमांक देने से ३९ नं० पर उद्योतनसूरि आते हैं। दोनों को एक ही मानने पर ३८ नं० पर उद्योतनसूरि आते हैं।
उद्योतनसूरि से कई गच्छ उद्भूत हुए थे, उनमें खरतरगच्छ, बृहद्गच्छ आदि प्रमुख हैं। अतः उद्योतनसूरि के बाद की पट्ट-परम्परा का वर्णन आगे किया जाएगा।
श्री मुनिसुन्दरसूरि संदर्शित गुर्वावलि पट्ट-परम्परा में ३५वें क्रमांक पर विमलचन्द्रसूरि और ३६वें पर उद्योतनसूरि आते हैं और धर्मसागरोपाध्याय प्रणीत तपागच्छ पट्टावली में ३४ क्रमांक पर विमलचन्द्रसूरि, ३५ पर उद्योतनसूरि आते हैं। इनके अनुसार पूर्ण पट्ट परम्परा इस प्रकार है- १. भगवान् महावीर के पट्टधर
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स्वकथ्य
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