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(स्वकथ्य
भगवान् श्री महावीर की विशाल शिष्य-सम्पदा और गरिमापूर्ण पट्ट-परम्परा रही है। धर्मसंघ में भगवान् महावीर के शासन की जो पट्ट-परम्परा वर्तमान समय में अविच्छिन्न रूप से चल रही है, वह गणधर सुधर्मास्वामी से मानी जाती है। इतने विशाल श्रमण-संघ का संचालन, संरक्षण और व्यवस्थापन का कार्य कठिन था। अतः परमगीतार्थों ने इसे कुल, गण, संघ में विभाजित किया। सब के उपाचार्य अलग-अलग होते और इन सब के मुख्य संचालक गणनायक होते। कल्पसूत्र के आधार पर कहा जा सकता है कि विक्रम की पाँचवीं शताब्दी में क्षमाश्रमण देवर्धिगणि के समय तक यह श्रमण-संघ आठ गण, सत्ताईस कुल, पैंतालिस शाखा के रूप में प्रचलित था और इनके अधिकारी, शासक और व्यवस्थापक वर्ग को क्रमशः गणधर, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि तथा गणावच्छेदक आदि के रूप में सम्मानित किया जाता था। प्राचीन पुरालेखों एवं ग्रंथ-प्रशस्तियों के आधार पर मज्झमिका, उच्चा, निर्वृत्तिकुल, विद्याधरगच्छ आदि के उल्लेख प्राप्त होते हैं । सम्भवतः चन्द्रकुल ही चन्द्रगच्छ के रूप में प्रवर्तित हुआ हो। वर्तमान में केवल कौटिकगण, वज्रशाखा और चन्द्रकुल के नाम ही प्राप्त हैं जो कि सभी गच्छों में मान्य हैं। शेष गण, शाखा और कुल समय के प्रवाह में विलीन हो चुके हैं। परम्परा
श्रमण भगवान् महावीर के शासन की जो पट्ट-परम्परा अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है वह इस प्रकार है१. गणधर तुल्य युगप्रधान परम्परा - जिसमें श्रुतधर, पूर्वधर, परमगीतार्थों की गणना की गई है। ये गणधरों के तुल्य, युग के सर्वश्रेष्ठ प्रभावशाली शासनप्रभावक गीतार्थ आचार्य माने जाते हैं। २. अविच्छिन्न पट्टधर-परम्परा - इसमें भगवान् महावीर से लेकर जो पट्ट परम्परा में पदासीन आचार्य हुए हैं, उनकी गणना की जाती है। १. गणधर तुल्य युगप्रधान परम्परा - भगवान् महावीर की परम्परा के इतिहास में आचार्यों की जो सर्वमान्य सूची उपलब्ध है वह कल्पसूत्र की स्थविरावली ही है। समय के साथ जो शाखाएँ निकलती चली गईं उनके संबंध में व्यवस्थित सूचना उस स्थविरावली से उपलब्ध नहीं हो पाती क्योंकि उस व्यापक सूची में सभी आचार्यों के नाम सम्मिलित हैं। भ० महावीर की परम्परा में सर्वप्रथम युगप्रधानों की परम्परा को व्यवस्थित रूप देने का महत्त्वपूर्ण कार्य युगप्रधान जिनदत्तसूरि ने किया। उन्होंने भ० महावीर के पट्टधरों की पट्टावली का रूप दे इसे उनसे ही आरंभ किया। युगप्रधान जिनदत्तसूरि ने गणधरसार्द्धशतक प्रकरण में गणधर तुल्य जिन आचार्यों का उल्लेख किया है। वे निम्न हैं- गौतम स्वामी/
स्वकथ्य
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