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________________ ६. जिनसर्वसूरि-जिनहितसूरि के पट्टधर थे। ७. जिनचन्द्रसूरि-ये जिनसर्वसूरि के पट्टधर थे। इनके द्वारा सं० १४६९-१५०६ में प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ प्राप्त हैं। ८. जिनसमुद्रसूरि-ये जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर थे। आप द्वारा रचित रघुवंश एवं कुमारसंभव टीका प्राप्त है। ९. जिनतिलकसूरि-आप जिनसमुद्रसूरि के पट्टधर थे। सं० १५१० का टांक श्रीमाल कारित प्रतिमा लेख प्राप्त है। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित सं० १५०८ से १५२८ तक की सलेख जिनप्रतिमायें उपलब्ध हैं। १०. जिनराजसूरि-जिनतिलकसूरि के पट्टधर थे, इनका सं० १५५९ का प्रतिमा लेख प्राप्त है। ११. जिनचन्द्रसूरि-जिनराजसूरि के पट्टधर थे, इनके सं० १५६६-१५८७ के प्रतिमा लेख प्राप्त हैं। १२. जिनभद्रसूरि-आपके द्वारा प्रतिष्ठापित कई प्रतिमाएँ प्राप्त हैं। १३. जिनमेरुसूरि १४. जिनभानुसूरि-ये जिनभद्रसूरि जी के शिष्य थे। __इस परम्परा के उपाध्याय वाचनाचार्य आदि अनेक विद्वान् और समर्थ साहित्यकार हुए हैं। अभयचन्द्र, विद्याकीर्ति (१५०५), राजहंस, चारित्रवर्द्धन, महीचन्द्र (१५९१), लक्ष्मीलाभ, भानुतिलक, समयध्वज (सं० १६११) आदि अनेक विद्वानों एवं श्री जिनप्रभसूरि के साहित्य के संबंध में महोपाध्याय विनयसागर जी कृत शासन प्रभावक आचार्य जिनप्रभ और उनका साहित्य नामक ग्रन्थ अवश्य देखना चाहिए। '' (२६७) संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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