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________________ आचार्य श्री जिनसिंहसूरि आचार्य जिनसिंहसूरि युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर थे। साथ ही वे असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान् और कठिन साध्वाचार वाले प्रभावक पुरुष थे। इनका जन्म सं० १६१५ के मार्गशीर्ष पूर्णिमा को खेतासर ग्राम निवासी चोपड़ा गोत्रीय शाह चांपसी की धर्मपत्नी चांपल देवी की रत्नकुक्षि से हुआ था। आपका जन्म नाम मानसिंह था। सं० १६२३ में आचार्य जिनचन्द्रसूरि खेतासर पधारे थे, तब आचार्यश्री के उपदेशों से प्रभावित एवं वैराग्यवासित होकर आठ वर्ष की अल्पायु में ही आपने पूज्यश्री के पास बीकानेर में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षावस्था का नाम महिमराज रखा गया था। आचार्यश्री ने सं० १६४० माघ शुक्ला ५ को जैसलमेर में आपको वाचक पद प्रदान किया था। सूरिजी के साथ विचरण कर इन्होंने विद्याध्ययन और तीर्थयात्राएँ की थीं। सं० १६२८ में मेवात देश में विचरण और शौरीपुर, हस्तिनापुरादि तीर्थों की यात्रा का उल्लेख है जिसमें आप भी गुरुदेव के साथ ही थे। श्री जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास के अनुसार आपको सूरिजी ने अकबर के आमंत्रण से छः साधुओं के साथ लाहौर भेजा। इनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर बादशाह प्रतिदिन इनसे धर्मचर्चा करता था और काश्मीर प्रवास में भी सूरिजी से आज्ञा प्राप्त कर इनको साथ ले गया जिससे गजनी और काबुल तक अमारि उद्घोषणा हुई। इन्होंने काश्मीर तथा मार्गवर्ती अनेक तालाबों के जलचर जीवों की रक्षा व श्रीनगर में आठ दिन अमारि उद्घोषणा कराई। वाचकजी के सहवास से सम्राट पर जो अमिट प्रभाव पड़ा था इसी से सम्राट ने काश्मीर से आते ही सूरिजी से प्रार्थना कर इन्हें आचार्य पद से अलंकृत कराया। उस अवसर पर मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र ने करोड़ों रुपये सद्व्यय कर अभूतपूर्व महोत्सव का आयोजन किया, जिसका उल्लेख पीछे आ चुका है। सूरचन्द्र कृत रास के अनुसार इस पद महोत्सव पर टांक गोत्रीय श्रीमाल राजपाल ने १८०० घोड़े दान किये थे। अकबर की सभा में ब्राह्मणों के आक्षेप पर गंगा नदी की पवित्रता और सूर्य की अनुपस्थिति में रात्रिभोजन-त्याग आदि प्रत्युत्तर देकर विजय प्राप्त की थी। पाटण में धर्मसागर कृत ग्रंथ को अप्रमाणित करने तथा संघपति सोमजी के संघ के साथ शत्रुजयादि तीर्थों की यात्रा की थी। इस रास में आपके पिता का निवास स्थान बीठावास लिखा है। सं० १६५६ मिगसर सुदि १३ को बीकानेर में बोथरा धर्मसिंह-धारलदेनंदन-खेतसी को दीक्षा देकर राजसिंह का नाम रखा। बड़ी दीक्षा गुरु महाराज के कर-कमलों से हुई। तब "राजसमुद्र' नाम प्रसिद्ध किया। सं० १६६१ माघ सुदि ८ को बीकानेर के शाह वच्छराज बोथरा और मृगा देवी के पुत्र चोला (उपनाम सामल) को माता और बड़े भाई विक्रम के साथ अमरसर में दीक्षा दी। श्रीमाल थानसिंह ने दीक्षोत्सव में प्रचुर द्रव्य व्यय किया। इनका दीक्षा नाम सिद्धसेन मुनि प्रसिद्ध किया गया। बड़ी दीक्षा राजनगर में श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने दी। ये दोनों शिष्य आगे चलकर भट्टारक आचार्य जिनराजसूरि और जिनसागरसूरि नाम से प्रसिद्ध हुए। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२३३) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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