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________________ आपकी चरण पादुकाएँ-मूर्तियाँ उसी समय जैसलमेर, बीकानेर, मुलतान, खंभात, शत्रुजय आदि स्थानों में प्रतिष्ठित हुईं। बिलाड़ा तो मूल स्वर्ग-स्थान ही है, जहाँ दादावाड़ी में प्रतिवर्ष स्वर्गवास तिथि पर मेला लगता है। सूरत, पाटण, अहमदाबाद, भरुच, भाइखला-बम्बई आदि स्थानों पर आपकी स्वर्गतिथि दादा दूज नाम से प्रसिद्ध है और गुजरात की दादावाड़ियों में मेला लगता है। सूरिजी का विशाल साधु-साध्वी समुदाय था, उन्होंने ४४ नन्दियों में दीक्षाएँ दी जिससे २००० साधुओं के समुदाय का सहज अनुमान किया जा सकता है। इनके स्वयं के ९५ शिष्य थे, प्रशिष्य समयसुन्दर जी जैसों के ४४ शिष्य थे। इनके आज्ञानुवर्ती साधु-साध्वी सारे भारत में विचरण करते थे। आपने स्वयं राजस्थान में २९, गुजरात में २०, पंजाब में ५ और दिल्ली-आगरा प्रदेशों में ५ चातुर्मास किये। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के स्वदीक्षित शिष्य ९५ थे। साधनाभाव से सभी के नाम प्राप्त नहीं हैं, किन्तु इनकी विद्वत् शिष्य-परम्परा में कई प्रसिद्ध साहित्यकार विद्वान् हुए हैं। उनके द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तियों एवं अन्त:साक्ष्यों के आधार पर जो नाम प्राप्त होते हैं, उनमें से कतिपय उल्लेखनीय नाम निम्न हैं :१. पट्टधर श्री जिनसिंहसूरि - इनका परिचय आगे दिया गया है। २. इनके प्रथम शिष्य सकलचन्द्र गणि थे और सकलचन्द्र गणि के शिष्य विश्वविश्रुत साहित्यकार महोपाध्याय समयसुन्दर हुए। इनका परिचय एवं शिष्य परम्परा का उल्लेख आचार्य शाखा की परम्परा में दिया गया है। ३. नयविलास, ४. ज्ञानविलास, ५. हर्षविमल, ६. कल्याणकमल, ७. वाचक तिलककमल, ८. नयनकमल, ९. समयराजोपाध्याय, १०. धर्मनिधानोपाध्याय, ११. रत्ननिधानोपाध्याय, १२. रंगनिधान, १३. कल्याणतिलक, १४. सुमतिकल्लोल, १५. वाचक हर्षवल्लभ, १६. वाचक पुण्यप्रधान, १७. महो० सुमतिशेखर, १८. दयाशेखर, १९. भुवनमेरु, २०. लालकलश, २१. राजहर्ष, २२. निलयसुन्दर, २३. कल्याणदेव, २४. हीरोदय, २५. विजयराज। ___क्रमाङ्क ४ ज्ञानविलास के चार शिष्य हुए। इनके नाम हैं :-समयप्रमोद, लब्धिशेखर, ज्ञानविमल और नयनकलश। क्रमाङ्क ५ हर्षविमल के एक शिष्य श्रीसुन्दर का उल्लेख मिलता है। क्रमात ७ वाचक तिलककमल के शिष्य पद्महेम हुए। इनके चार शिष्यों आनन्दवर्धन, दानराज, नेमसुन्दर और हर्षराज का उल्लेख मिलता है। इनमें से दानराज की शिष्य सन्तति का विकास १. जिनचन्द्रसूरि के पौत्र शिष्य और पद्मकीर्ति के शिष्य रामचन्द्र अच्छे विद्वान्, कवि और वैद्यकशास्त्र में निष्णात् थे। इनके द्वारा वि०सं० १७२० में रचित रामविनोदवैद्यक और वि०सं० १७२३ में रचित वैद्यविनोद आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं और अभी तक अप्रकाशित ही हैं। (२३१) संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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