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________________ आचार्य श्री जिनहंससूरि । श्री जिनसमुद्रसूरि के पट्ट पर गच्छनायक श्री जिनहंससूरि जी हुए। सेत्रावा नामक ग्राम में चोपड़ा गोत्रीय साह मेघराज इनके पिता और श्री जिनसमुद्रसूरि जी की बहिन कमला देवी माता थीं। सं० १५२४ में इनका जन्म हुआ था। आपका जन्म नाम धनराज और दीक्षा का नाम धर्मरंग था। सं० १५३५ में विक्रमपुर में दीक्षा ली थी। सं० १५५५ में अहमदाबाद नगर में आचार्यपद स्थापना हुई। तदनन्तर सं० १५५६ ज्येष्ठ सुदि नवमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में श्री बीकानेरनगर में बोहिथरा गोत्रीय करमसी मंत्री ने पीरोजी लाख रुपया व्यय करके पुनः आपका विस्तार से पद महोत्सव किया और उसी समय शांतिसागराचार्य ने आपको सूरि मंत्र प्रदान किया। वहीं नेमिनाथ चैत्य में बिम्बों की प्रतिष्ठा करवायी। तदनन्तर एक बार आगरा निवासी संघवी डूंगरसी, मेघराज, पोमदत्त प्रमुख संघ के आग्रहपूर्वक बुलाने पर आप आगरा नगर गये। उस समय बादशाह के भेजे हुये घोड़े, पालकी, बाजे, छत्र, चँवर आदि के आडम्बर से आपका प्रवेशोत्सव कराया गया। इस उत्सव में गुरु भक्ति, संघ भक्ति आदि कार्य में दो लाख रुपये खर्च हुए थे। सजावट बड़ी दर्शनीय हुई थी। लोगों की भीड़ से मार्ग संकीर्ण हो गए थे। दिल्लीपति बादशाह सिकंदर गजारुढ़ होकर अमीर, उमराव, वजीर आदि अमलदारों के साथ सामने आये। वाजिब बज रहे थे। श्राविकाएँ अपने मस्तक पर मंगलकलश धारण कर गुरुश्री को मोतियों से बधा रहीं थीं। रजत मुद्रा (रुपयों) के साथ पान (तांबूल) दिये गये। इस यशस्वी कार्य से बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ। चुगलखोरों के बहकाने से सूरिजी को राजसभा में बुला कर करामात दिखाने के लिए आग्रह किया, क्योंकि उसे श्री जिनप्रभसूरि जी के चमत्कारों की बातें कर्ण गोचर थीं। उन्हें दीवान-दरबार धवलगृह में रखा। पूज्यश्री ने तपस्या और ध्यान प्रारम्भ किया। यथासमय श्री जिनदत्तसूरि जी के प्रसाद और चौसठ योगिनियों के सान्निध्य से चमत्कार हुआ। सूरिजी ने दैवी शक्ति से बादशाह का मनोरंजन कर पाँच सौ बन्दीजनों को कैद से छुड़ाया और अभय घोषणा से सुयश प्राप्त कर उपाश्रय पधारे। सारा संघ बड़ा हर्षित हुआ। आपने तीन नगरों में प्रतिष्ठाएँ कीं। अनेकों संघपति प्रमुख पद पर स्थापित किये। सं० १५८२ में आचारांग दीपिका की बीकानेर में रचना की। पाटण नगर में तीन दिन अनशन करके सं० १५८२ में स्वर्गवासी हुए। सं० १५८७ में श्री जिनमाणिक्यसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित आपके चरण जैसलमेर के श्री पार्श्वनाथ जिनालय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के टीकाकार महोपाध्याय पुण्यसागर आप ही के शिष्य थे। महोपाध्याय पुण्यसागर जी के शिष्य पद्मराज गणि भी उच्चकोटि के विद्वान थे और इनके निर्मित कई ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। जिनहंससूरिजी के शासनकाल में महोपाध्याय धवलचन्द्र एवं गजसार आदि अनेकों उच्चकोटि के विद्वान विद्यमान थे। (२२०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_04
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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