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वि०सं० १३८९ भाद्रपद सुदि ४ को इनके उपदेश से श्रावक कुमारपाल ने कल्पचूर्णि की प्रतिलिपि करायी जो आज जैसलमेर ज्ञान भंडार में सुरक्षित है।
इनके द्वारा रचित चैत्यवन्दन-कुलकवृत्ति और कतिपय स्तोत्र प्राप्त हैं। समकालीन रचनाकार तरुणप्रभसूरि - षडावश्यकबालावबोध, लब्धिनिधान - चैत्यवन्दनकुलकवृत्तिटिप्पणक, विनयप्रभ उपा० - गौतमरास, कविपद्म, धर्मकलश, सारमूर्ति आदि। परम्परा
विनयप्रभोपाध्याय के पौत्र शिष्य क्षेमकीर्ति हुए जिन्होंने ५०० धाडेती (बराती) लोगों को एक साथ दीक्षा दी थी। इसी कारण क्षेमकीर्ति के नाम से एक उपशाखा का प्रादुर्भाव हुआ, जो वर्तमान में भी क्षेमधाड़ शाखा के नाम से विद्यमान है। प्रतिष्ठित प्रतिमालेख (प्राप्त)
खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली में इनके द्वारा विभिन्न अवसरों पर जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करने का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें से कुछ आज भी उपलब्ध होती हैं। इनका विवरण एवं मूलपाठ इस प्रकार है
१. समवसरण (धातुः) सम्वत् १३७९ मार्ग व० ९ (५) आ। जिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीसमवसरण (ण) प्रतिष्ठितं कारितं सा० वीजडसुतेन सा० पातुसुश्रावकेण || १. जैन तीर्थ सर्व संग्रह भाग-२, पृष्ठ ३७२, पार्श्वनाथ मन्दिर, हाला
२. महावीर-एकतीर्थीः । ॐo सम्वत् १३०९ (? १३७९) मार्गशीर्ष वदि ५ श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्री महावीरदेवबिम्बं प्रतिष्ठितं कारितं च स्वश्रेई (य) से भण गांगा सुतेन भण0 बचरा सुश्रावकेण पुत्र सोनपाल सहितेन ॥ २. जयन्तविजय, आबू भाग-२, लेखांक ५२७, कुन्थुनाथ मन्दिर, अचलगढ़
___ ३. जिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः सं० १३७९ मार्ग व० ५ खरतर० श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीजिनचन्द्रसूरि........... प्रतिमा प्रतिष्ठितं ॥ ३. विनयसागर, नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, लेखांक ८, शान्तिनाथ मन्दिर भण्डारस्थ, नाकोडा
४. जिनरत्नसूरि-मूर्तिः सम्वत् १३७९ मार्ग वदि ५ श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य श्रीजिनरत्नसूरिमूर्ति श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः
(१९८) Jain Education International 2010_04
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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