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________________ साथ पूज्यश्री के गुण-ग्राम का वर्णन किया जा रहा था। बहिरामपुर में कितने ही दिन ठहर कर और अपनी वाणी रूप किरणों से मिथ्यान्धकार को भगा कर उसके स्थान पर सम्यग् ज्ञान रूप महाप्रकाश का साम्राज्य फैलाया। इसके बाद क्यासपुर के खरतरगच्छीय श्रावक समुदाय के प्रबल अनुरोध से महाराज ने प्राचीन युग के उत्तम आगम (शास्त्र) रूप रत्न की मूल धारणा के अभाव वाले यानि जिन प्रणीतागम के यथार्थ ज्ञान से शून्यता वाले सूरियों से प्राप्त होते हुए अज्ञान रूप अंधकार के क्रीड़ा नगर तुल्य क्यासपुर की ओर विहार किया। मार्ग में श्री (सि) लार वाहण नामक गाँव के निवासी साह धीणिग, साह जेठू, साह वेला, साह महाधर आदि मुख्य-मुख्य श्रावक समुदाय ने जब सुना कि पूज्यश्री पधार रहे हैं, तब वे लोग अपने नगर के नवाब को साथ लेकर महाराज के सम्मुख आये और बड़े बाजे-गाजे के साथ महाराज का नगर में प्रवेश करवाया। यह प्रवेश महोत्सव भी बहिरामपुर की भाँति ही हुआ। उस प्रवेशोत्सव में बजने वाले नाना जातीय वाजित्रों की महान् आवाज सुनकर मयूरों को मेघ गर्जना का भ्रम होने से खूब नाचने लगे। मन्दिरों के द्वारों पर वंदनमालाएँ बाँधी गई थीं। यहाँ पर पूज्य श्री छः दिन विराजे। इन छहों दिनों में लगातार साधर्मी-वात्सल्य, अवारित सत्र और संघ-पूजा आदि कार्य बड़ी उत्तमता से होते रहे। इसके बाद सब को प्रबोध देने वाले जिनकुशलसूरि जी महाराज वहाँ से चलकर बीच में खोजा वाहन नामक नगर में पहुँचे। वहाँ के श्रावकों ने बड़े समारोह के साथ नगर में प्रवेश करवाया। १११. महाराज वहाँ से फिर क्यासपुर की ओर चले। महाराज को लेने के लिए क्यासपुर निवासी मुख्य-मुख्य श्रावकों का दल मार्ग में ही आ मिला। जिनमें सेठ मोहन जी, सा० कुमरसिंह, व्यव० खीमसिंह, सा० नाथू, साह जट्टड आदि श्रावकों के नाम विशेषतया उल्लेखनीय हैं, क्योंकि स्वाभाविक गुरु-भक्ति के रस में इनकी आत्मा अत्यन्त निमग्न थी। ये लोग जिसकी सीमा नहीं ऐसे विशाल विधि-मार्ग रूपी सरोवर में कलहंस के समान थे। श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज के शुभागमन की खुशी में इन सभी के रोम-रोम खिल रहे थे। ये लोग क्यासपुर के नवाब से मांग कर दंडाधारी पुलिस के आठ मुस्लिम जवानों को साथ लेकर इसलिए आये थे कि नगर प्रवेश के समय कोई दुष्ट मनष्य किसी प्रकार का बखेडा उत्पन्न न कर सके। महाराज के स्वागत के लिए सेठ चाचिग आदि कमलागच्छ के श्रावक एवं अन्य लोगों ने उत्सव में भाग लिया था। उस समय नर-नारियों का खासा मेला लगा था। उस समय भादों मास के सजल जलधरों की गजरिव ध्वनि के समान गाजेबाजों की ध्वनि का तुमुल गुंजारव हो रहा था। महामिथ्यात्व के मर्म का नाश करने में कतरनी रूप चर्चरियां गायी जा रही थीं। सधवा नारियाँ तमाम अमंगल रूपी अग्नि की ज्वालाओं को शान्त करने में जल का काम करने वाले धवल मंगल गीत गा रही थीं। चारण-भाट आदि लोग उत्तम हस्ती के दाँत जैसे उज्ज्वल चरित्रों से प्रसरित महाराज के निर्मल यशोवर्णना गर्भित नूतन सरस रचना वाली कवितायें सुना रहे थे। तमाम सकर्ण (समझदार) मनुष्यों के कर्ण रूपी मृग बालकों को प्रिय लगे वैसे सुन्दर राग-रागिनियों से उत्तम गायक (गंधर्व) लोग गायन गा रहे थे। पूर्वकाल में कभी देखे न होने के कारण जैन श्वेताम्बर मुनियों के दर्शनार्थ उत्कण्ठित हुए अनेकों नर-नारियाँ अपने-अपने कार्यों को संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१९१) www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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