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विद्वानों की कृतियाँ और सिद्धियाँ अपने गच्छ की सीमित परिधि से ऊपर उठकर सर्वगच्छीय सम्मान प्राप्त कर सकी हैं।
खरतरगच्छ का समग्र साहित्य सरस्वती का विराट भंडार है। इस गच्छ ने ऐसे-ऐसे ग्रन्थ दिये हैं, जिनकी टक्कर के दूसरे ग्रन्थ सम्पूर्ण संसार में नहीं हैं। उदाहरण के लिए अष्टलक्षी। इस ग्रन्थ में 'राजा नो ददते सौख्यम्' इस अष्टाक्षरीय वाक्य के दस लाख बाईस हजार, चार सौ सत्ताईस अर्थ प्रस्तुत हैं। विश्व-साहित्य को ऐसे ग्रन्थों पर गर्व है। खरतरगच्छ की साहित्यिक-साधना लगभग हजार वर्ष की है। विक्रम की सतरहवीं-अठारहवीं शदी में खरतरगच्छ ने सर्वाधिक साहित्य का सृजन किया। ___ खरतरगच्छ के साहित्यकारों में आचार्य अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, मन्त्रि-मण्डन, ठक्कुर फेरु, महोपाध्याय समयसुन्दर, उपाध्याय देवचन्द्र, अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा आदि के नाम विशेषतः उल्लेख्य हैं। खरतरगच्छ ने साहित्य-संसार को हजारों ग्रन्थ-रत्न प्रदान किये हैं।
(१) आगम टीकाएँ :-जैन आगमों के टीकाकारों में आचार्य अभयदेवसूरि का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। अभयदेव खरतरगच्छ के तृतीय पट्टधर थे। आगम-साहित्य पर आज तक जिसने भी कलम चलाई, उसने अभयदेवसूरि कृत आगम-टीकाओं का अवश्य आश्रय लिया। अभयदेव ने नौ अंग-आगमों पर व्याख्या ग्रन्थ लिखे थे।।
अन्य आगम-टीका-ग्रन्थों में निम्न उल्लेखनीय हैं-जिनराजसूरि कृत भगवतीसूत्र-टीका एवं स्थानांगसूत्रटीका, साधुरंग कृत सूत्रकृतांगसूत्र-टीका-दीपिका, उपाध्याय कमलसंयम कृत उत्तराध्ययनसूत्र-टीका सर्वार्थसिद्धि, उपाध्याय पुण्यसागर कृत जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, मतिकीर्ति कृत दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टीका, सहजकीर्ति कृत निशीथसूत्रार्थ-टीका आदि। कल्पसूत्र पर खरतरगच्छीय विद्वान मुनियों ने तीस से अधिक व्याख्या-ग्रन्थ निबद्ध किये हैं, जिनमें महोपाध्याय समयसुन्दर कृत कल्पलता नामक टीका उल्लेखनीय है। समयसुन्दर कृत दशवैकालिक टीका भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
(२) सैद्धान्तिक-प्रकरण :-खरतरगच्छीय विद्वानों ने आगमिक व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों की भी रचना की है। उन्होंने एतद्विषयक ग्रन्थों की व्याख्याएँ भी प्रस्तुत की हैं और स्वतन्त्र रूप से भी लिखा है। सैद्धान्तिक ग्रन्थकारों में आचार्य अभयदेवसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनप्रभसूरि, गणि रामदेव, महोपाध्याय समयसुन्दर, उपाध्याय देवचन्द्र, उपाध्याय क्षमाकल्याण, चिन्दानन्द आदि प्रमुख हैं।
(३) वैधानिक एवं सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरमूलक साहित्य :-जैन धर्म में विभिन्न गच्छों एवं समुदायों में भेद मुख्यतः विधि-विधान सापेक्ष है। प्रत्येक गच्छ की धार्मिक क्रिया एवं विधि-विधान दूसरे गच्छ से कुछ भिन्नता लिये रहते हैं। खरतरगच्छ की परम्परा में मान्य विधि-विधानों को मुनियों ने
भूमिका
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