________________
अपने पट्ट पर आसीन कर दिया था। प्रस्तुत गुर्वावली में कहीं भी इनके माता-पिता और बचपन के नाम का उल्लेख नहीं किया है। जिनकुशलसूरि द्वारा रचित जिनचन्द्रसूरि चतुःसप्ततिका के अनुसार वि०सं० १३२४ मार्गशीर्ष सुदि ४ को इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम देवराज और माता का नाम कोमल देवी था। इनका बचपन का नाम खंभराय था। वि०सं० १३३२ में इन्होंने जिनप्रबोधसूरि से दीक्षा ग्रहण की और क्षेमकीर्ति नाम प्राप्त किया। दीक्षा के पश्चात् इन्होंने विशद अध्ययन किया। इनके पट्टधर जिनकुशलसूरि के पिता मंत्री जिल्हागर खम्भराय के भ्राता थे अतः ये जिनकुशलसूरि के चाचा होते थे। ये कलिकालकेवली के विरुद से सम्मानित थे। इन्होंने विभिन्न वादियों पर विजय प्राप्त की थी।
कुछ स्तोत्रों के अतिरिक्त ग्रन्थ के रूप में इनकी कोई कृति प्राप्त नहीं है। इनके समय में लखमसीकृत जिनचन्द्रसूरिवर्णन रास प्राप्त है। सुप्रसिद्ध रचनाकार ठकुर फेरु इन्हीं के श्रावक थे। समकालीन विद्वान् १. भुवनहिताचार्य २. राजशेखराचार्य ३. राजेन्द्रचन्द्राचार्य ४. दिवाकराचार्य
उक्त गुर्वावली में इनके द्वारा विभिन्न अवसरों पर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा का उल्लेख प्राप्त होता है इनमें से कुछ आज भी उपलब्ध होती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है
१. पार्श्वनाथ-सपरिकरः ।। || ॐ ॥ सं० १३४६ वैशाख सुदि ७ श्रीपार्श्वनाथबिम्बं श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः शिष्यैः श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं.... रा० खीदा सुतेन सा० भुवण श्रावकेन स्वश्रेयोर्थं आचंद्रा नंदतात् १. नाहटा, बीकानेर जैन लेख संग्रह, ले० १३५७, महावीर स्वामी मन्दिर (वैदों का) भण्डारस्थ, बीकानेर।
२. जिनप्रबोधसूरि-मूर्तिः सं० १३५१ माघवदि १ श्रीप्रह्लादनपुरे श्रीयुगादिदेवविधिचैत्ये श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्य श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनप्रबोधसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठिता कारिता........ रामसिंहसुताभ्यां सा० नोहाकर्मण श्रावकाभ्यां स्वमातृराईमई श्रेयोऽर्थं ॥ २. बुद्धिसागरसूरि, जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह भाग-२, ले० ७३४, शान्तिनाथ मन्दिर भूमिगृह, राधनपुर।
३. शान्तिनाथः सम्वत् १३५३ माघ वदि १ श्रीशान्तिनाथ प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता च सा० हेमचन्द्र भा० रतन सुत श्रावकाभ्यां देव (?) लक्ष्मी श्रेयोर्थं । ___३. कान्तिसागर, जैन धातु प्रतिमा लेख, भाग-१, लेखांक २०, बड़ा मन्दिर, नागपुर।
४. चतुष्किका स्तम्भलेखः ॥ ॐ ॥ सम्वत् १३५६ कार्तिक्यां श्रीयुगादिदेवविधिचैत्ये श्रीजिनप्रबोधसूरिपट्टालंकारश्रीजिनचन्द्रसूरि-सुगुरूपदेशेन सा0 जाल्हणसुत सा० राजदेवसत्पुत्रेण सा० सलखणश्रावकेण साo मोकलसिंह तिहुणसिंह परिवृतेन स्वमातुः सा पउमिणिसुश्राविकायाः श्रेयोऽर्थं सर्वसंघप्रमोदार्थं
(१६६)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
___Jain Education international 2010_04