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उसी के साथ समाप्त हो गयी । धार्मिक दृष्टिकोण से यह घटना महत्त्वपूर्ण हो सकती है, परन्तु इतिहास की दृष्टि से इसका कोई महत्त्व नहीं है ।
समकालीन प्रमुख रचनाकार :
लक्ष्मीतिलक उपाध्याय
अभयतिलक उपाध्याय
प्रत्येकबुद्धचरित, श्रावकधर्मबृहद्वृत्ति आदि हेमचन्द्राचार्यकृत संस्कृतद्वयाश्रयकाव्य पर टीका, न्यायालंकार टिप्पण आदि
धर्मतिलक
प्रबोधचन्द्रसूरि
विवेकसमुद्र उपाध्याय
सर्वराजगणि
पूर्णकलश उपाध्याय
कवि आसिगु, शाह रयण, शाह भत्तउ आदि भी इन्हीं के समकालीन रचनाकार रहे।
गुर्वावली के अनुसार वि०सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० को इन्होंने जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। इनमें से ४ लेख चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर में संरक्षित जिन प्रतिमाओं पर हैं, दो लेख नवखंडा पार्श्वनाथ मंदिर, घोघा (गुजरात) में प्राप्त प्रतिमाओं पर प्राप्त हैं तथा वि०सं० १३१० वैशाख सुदि १३ का एक लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । यह प्रतिमा पार्श्वनाथ जिनालय, जालौर में है । इनका मूल पाठ निम्नानुसार है
:
१. सुमतिनाथ-पंचतीर्थी
सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः सुमतिनाथ (?) प्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता सा० लोल् श्रावकेण ।
[ नाहटा - बीकानेर जैन लेख संगह, लेखांक १४२]
लघुअजितशांतिवृत्ति सन्देहदोहावली बृहद्वृत्ति
पुण्यसारकथानक, नरवर्मचारित्र आदि
गणधरसार्धशतक लघुवृत्ति एवं पंचलिंगीलघुवृत्ति
हेमचन्द्राचार्यकृत प्राकृतद्व्याश्रयकाव्यवृत्ति
२. पंचतीर्थी
सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः श्रीप्रतिष्ठिता श्रावक भुवनपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता ।
[ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १४४]
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३. पंचतीर्थी
सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १३ (११०) श्रीजिनपतिसूरिशिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता सा० भुवनपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता ।
[ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १४५]
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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