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________________ है । कहीं पर सदाचार सम्पन्न सुन्दर वचनों की रचना - चातुरी में प्रसिद्ध, नीतिशास्त्र के विचार में विचक्षण ऐसा मंत्रिमण्डल आचार - अनाचार का विचार कर रहा है। इसी सभा में किसी स्थान पर उत्कट प्रतिवादियों को परास्त करने में समर्थ, उत्तमोत्तम समस्त विद्याएँ जिनकी जिह्वा पर नृत्य कर रही हैं, ऐसा विद्वद् वृन्द विद्यमान है । यहाँ पर अनेक उद्धत कन्धरा वाले अनेक मागध-भाट लोग राजाओं की अत्यन्त धीरता, गंभीरता और उदारता का बखान कर रहे हैं । चन्द्रमा की किरणों के समान श्वेत-यश के द्वारा धवल की हुई पृथ्वी को भोगने वाले, अनेक छोटे-बड़े सामन्त राजा आआकर जिसमें प्रवेश कर रहे हैं। जिसमें राजा नाना वर्ण की मणियों के जड़ाव से बनाये हुए इन्द्र धनुषाकार सिंहासन पर बैठे हुए हैं। जिसने अपने बाहुबल से तमाम शत्रु समुदाय को छिन्न-भिन्न कर दिया है, ऐसे राजा पृथ्वीराज के चरण-कमलों में अनेक राजा लोग किरीट-मुकुटाच्छादित मस्तक को झुकाते हैं। जैसे बगीचा पुन्नाग और श्रीफल के वृक्षों से शोभित होता है वैसे ही यह सभाभवन हस्ति तुल्य पुष्टकाय वाले पुरुषों से तथा लक्ष्मी के वैभव से शोभित है । जैसे महाकवियों का काव्य व्याख्या करने योग्य वर्णों से पूर्ण तथा श्रृंगार, हास्य, करुण आदि रसों से युक्त रहता है, वैसे ही यह सभाभवन ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों से युक्त है तथा अभिलाषा को व्यञ्जित करने वाला है । जैसे सरोवर की शोभा राजहंस और कमलों से होती है वैसे ही आपके सभा भवन की शोभा राजा और पद्मा लक्ष्मी से है । इन्द्र की नगरी अमरावती में कोई भी मिथ्याभाषी नहीं हैं तथा उसमें सदैव देवताओं की भीड़ बनी रहती है, वैसे ही इस सभा में सब सत्यवक्ता हैं और इसमें विद्वानों की भीड़ सदैव लगी रहती है। आकाश में जिस प्रकार मंगल और शुक्र ग्रह शोभावृद्धि करते हैं वैसे ही आपकी सभा में गानादि मांगलिक कार्य तथा कवि लोग शोभा बढ़ाने के हेतु हैं । कान्ता के मुख की शोभा अच्छेअच्छे अलंकारों से व विचित्र फूल पत्तियों से है, तथैव इस सभा मण्डप की शोभा भी सुन्दर सजावट से है एवं विविध प्रकार के चित्रित चित्रों से है । ] महाराज वर्णन कर ही रहे थे कि बीच में ही राजपण्डित लोग बोले- आचार्य ! पकते हुए अनाज के एक दाने की तरह हमने आपकी साहित्य - विषयक योग्यता पहचान ली। अब आप कृपया इस वर्णन को अन्तिम क्रिया पद देकर समाप्त कीजिए। महाराज ने अपने सभा - वर्णनात्मक निबन्ध का उपसंहार करते हुए कहा एवंविधं श्रीपृथ्वीराजसभामण्डपमवलोक्य कस्य न चित्रीयते चेतः ? [ अर्थात्-त्- महाराज पृथ्वीराज के ऐसे सभा मण्डप को देखकर किस पुरुष का चित्त आश्चर्यमग्न नहीं होता ? ] आचार्य ने इस निबन्ध ( सभावर्णन) को विस्तार व्याख्या सहित फिर से बांच सुनाया । पण्डित लोगों ने विद्वत्तापूर्ण सभावर्णन सम्बन्धी निबंध को सुनकर आश्चर्यमग्न हो सिर हिलाया । पद्मप्रभाचार्य ने कहा-पण्डित महानुभावों! यह रचना भी कादम्बरी, वासवदत्ता आदि काव्यों से ली हुई जान पड़ती है । (७४) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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