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________________ वस्तु (सद् ) का अर्थक्रियाकारी होना तभी संभव है जब उसमें विरोधी धर्मों का युगपत् अस्तित्व हो । विधि और निषेध रूप उभयधर्मों की एक साथ उपलब्धि में ही अर्थक्रिया पायी जाती है जैसे वहिरंग और अन्तरंग कारणों से ही कार्य की निष्पत्ति होती है, इनके बिना नही । ' इस प्रकार जैनदर्शन की मान्यता के अनुसार समस्त वस्तुओं में सप्रतिपक्ष ( विरोधी ) धर्म पाया जाता है।' लोक में जो कुछ है वह सब द्विपदावतार है, इसका समर्थन ठाणांग भी करता है। अनंतधर्मात्मक वस्तु ही कार्य कर सकती है, इसकी पुष्टि स्वामी कार्तिकेय भी करते हैं। जो वस्तु अनेकांतस्वरूप है वही नियम से कार्यकारी होती है। एकांतरूप द्रव्य कार्यक्षम नहीं हो सकता; और जो कार्यक्षम नहीं होता उसे द्रव्य नहीं कह सकते, क्योंकि परिणमन रहित नित्य द्रव्य न विनाश को प्राप्त होता है और न उत्पाद को, फिर वह कार्य कैसे करता है, और जो क्षणक्षण में विनाश को प्राप्त होता है वह भी अन्वयी द्रव्य से रहित होने के कारण कार्यकारी नहीं हो सकता । " नय का स्वरूप और उसकी व्याख्याः - जब तक हम नयवाद की चर्चा नहीं करेंगे, हमारा विवेचन अधूरा रहेगा। संपूर्ण ज्ञान प्राप्ति के दो आधार माने गये हैं- प्रमाण और नय।' अनेकधर्मात्मक वस्तु को अखंड रूप से ग्रहण करना प्रमाण है। इसे सकलादेश भी कहते हैं । " नय वस्तु के एक धर्म को ग्रहण करता है, साथ ही दूसरे नय की विवक्षा रखता है। दुर्नय एक धर्म को ग्रहण करके अन्य धर्मों का निराकरण करता है।' नय की व्याख्या करते हुए आचार्य पूज्यपाद ने कहा कि - अनेकान्तात्मक वस्तु में विरोध के बिना हेतु की मुख्यता से साध्यविशेष की यथार्थता के 1. एवं विधिनिषेधा...रुपाधिभि: आ.मी. 1.21 2. एवं सप्रतिपक्षे सर्वस्मिन्नेव वस्तुत्वेस्मिन् । उद्धृतेयम् स्याद्वादरत्नाकर 5.88.34 3. ठाणं 2.1 4. जं वत्थु अणेयंत... दीसए लोए "एयतं पुण दव्वं केरिस दव्व" परिणामेण विहीणं.. कहं कुणइपज्जयभित्तं तच्चं ... किंपि साहदि । का. प्रे. 225.28. 5. " प्रमाणनयैरधिगमः " । त.सू. 1.6 6. तथा चोक्तं सकामोदेश: प्रमाणाधीनः । स. सि. 1.6 7. अनेकस्यानेकरूपस्य धीः प्रमाणं तदंशधीः । नयो धर्मान्तरापेक्षी, दुर्नयस्तन्निराकृतिः । अष्टशती में उद्धृत पृ. 35 Jain Education International 2010_03 53 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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