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________________ कथंचित् भेदाभेद के कारण ही 'द्रव्य' इस संज्ञा की सिद्धि हो जाती है। गुण और द्रव्य परस्पर अविभक्त रूप से रहते हैं, अत: अभेद है तथा संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा भेद है। जैनदर्शन की भेदाभेद की स्वीकृति से विरोधों की समाप्ति स्वतः ही हो जाती है। हमें वस्तु के स्वरूप को कथंचित् स्वीकार करना चाहिये। अद्वैत एकांत को मानने से उसमें कारकों (कर्ता, कर्म, करण) का जो प्रत्यक्षसिद्ध भेद मानते हैं, उसमें विरोध आता है, क्योंकि एक वस्तु स्वयं अपने से उत्पन्न नहीं होती। उत्पाद व्यय ध्रौव्य में काल की भिन्नता एवं अभिन्नताः-द्रव्य का लक्षण उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त है। वस्तु के इन लक्षणों में काल की भिन्नता भी है और अभिन्नता भी। इन्हें द्रव्य से भिन्न भी कहा जा सकता है और अभिन्न भी, क्योंकि जो सिकुड़ने का समय है वह फैलने का नहीं और एक अपेक्षा से सिकुडने के और फैलने के समय में भिन्नता भी नहीं। जिस प्रकार तराजू के एक पलड़े का उपर जाना और दूसरे का नीचे आना एक साथ होता है, उसी प्रकार उत्पाद और व्यय भी एक काल में ही होते हैं। __द्रव्य एक ही क्षण में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्ययुक्त होता है।' पूर्व पर्याय के विनाश का क्षण ही उत्तरपर्याय के उत्पाद का क्षण है। अतः उत्पाद और विनाश समकालीन हैं। एक अपेक्षा से इनमें कालभेद नहीं है, क्योंकि एक पर्याय की आदिकालीन सीमा और अंतिमकालीन सीमा भिन्नभिन्न हैं। जिस समय उत्पाद-विनाश रूप पर्याय परिवर्तन घटित होता है उस समय भी वस्तु सामान्यरूप से विद्यमान रहती है। जैसे अंगुली एक वस्तु है, वह जब सीधी (सरल) है तब टेढ़ी नहीं है और जब टेढ़ी है तब सीधी नहीं है। अंगुली में टेढ़ापनरूप पर्याय के उत्पाद और सरलतारूप पर्याय के विनाश का समय अलग-अलग नहीं है; यह हुई एक वस्तु रूप अंगुली में उत्पाद विनाश रूप दो पर्यायों के एक साथ होने । कथंचिद् भेदाभेदोपपत्तेस्तद्व्यपदेशसिद्धिः . 5.2.529 .2. अद्वैतेकांत.....स्वस्मात् प्रजायते. आ.मी. 2.24 .3. सन्मति तर्क 3.36 4. जो आऊंचण कालो.....कालंतरंणत्थि. स.त. 3.36 . 5. नाशोत्पादौ.....तुलान्तयोः उद्धृत आ.मी. 220 पृ. मे • 6. सभवेदं खलु दवं....सण्णिट्टठेहिं प्र.सा. 102. 46 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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