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________________ वैशेषिकमत में द्रव्य का लक्षण है-जिसमें गुण और क्रिया पाये जायें तथा जो कार्य का समवायी कारण हो।' पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश,, काल, दिक्, आत्मा और मन, ये नौ द्रव्य हैं। एक अपेक्षा से अद्रव्यत्व और अनेकद्रव्यत्व भी द्रव्य का लक्षण है। आकाश, काल, दिक, आत्मा, मन और परमाणु अद्रव्यत्व हैं, ये न किसी से उत्पन्न हैं और न किसी के उत्पादक हैं। अवशिष्ट पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये अनेक द्रव्यत्व हैं, क्योंकि ये अनेक द्रव्यों से उत्पन्न भी हैं और अनेकों के उत्पादक भी' वैशेषिक दर्शन ने गुण को भी नितांत भिन्न माना है। जो एक द्रव्याश्रित हो गुणरहित एवं संयोग विभाग का सापेक्ष कारण हो, वह गुण है। रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयल द्रवत्व, गुरुत्व, संस्कार, स्नेह, धर्म, अधर्म, और शब्द, ये 24 गुण होते हैं।' वैशेषिक दर्शन की तरह बौद्ध दर्शन भी एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ से संबंध स्वीकार नहीं करते। परतंत्रता नाम संबंध का है परंतु जो वस्तु सिद्ध हो गयी उसमें परतंत्रता का प्रश्न ही नहीं है। इसीलिए किसी भी पदार्थ में कोई वास्तविक संबंध नहीं है।' 1. क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम्" वै.सू. 1.1.15 2. वैशेषिकदर्शन 1.1.15 3. द्रव्यं द्विधा अद्रव्यममनेकद्रव्यं च। न विद्यते द्रव्यं जन्यतया जनकतया च यस्य तद्रव्यं द्रव्यम् यथाकाशकालादि। अनेकं द्रव्यं जन्यतया च जनकतया च यस्य तदनेकद्रव्यं द्रव्यम्" स्याद्वाद. 4.49 से उद्धत 4. द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम्" वै.सू. 1.1.16 5. रूप रस गंध.... प्रयत्नश्च" वै.स. 1.1.6 6. पारतंत्र्यं हि संबंध: सिद्धे का परतंत्रता। तस्मात् सर्वस्वभावस्य संबंधो नास्ति तत्वतः" "संबंधपरीक्षा" उद्धृतेयम् आ.मी. 1.11.123 20 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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