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________________ करते हैं क्या उन्होंने उस लोक का साक्षात्कार किया है? अगर नहीं, तो क्या उनका वचन अप्रमाणिक नहीं होगा?' बुद्ध ने तो यहाँ तक कहा कि जो इन अव्याकृत प्रश्नों में उलझकर रह जाता है वह दुःख से मुक्त नहीं हो सकता।' नागार्जुन समग्र व्यावहारिक धारणाओं की परीक्षा करके यही निर्णय लेते हैं कि यह सब कुछ असत्य है, मात्र शून्यता ही सत्य है।' __ सांख्य के अनुसार द्रव्य एवं सृष्टि:-सांख्य द्वैतवादी है, क्योंकि यह पुरुष और प्रकृति दोनों की सत्ता स्वीकार करता है। इसके अनुसार कार्य कारण में विद्यमान होता है। कारण की परिभाषा करते हुए सांख्य कहता है कि कारण वह सत्ता है जिसके अंदर कार्य अव्यक्त रूप से विद्यमान रहता है। इसके लिए वह कतिपय उक्तियाँ भी प्रस्तुत करता है। अभावात्मक पदार्थ किसी भी क्रिया का कारण नहीं हो सकता; असत् को सत् नहीं बनाया जा सकता। नीले को हजारों कलाकार भी पीला नहीं कर सकते। सांख्य इस सृष्टि को किसी बुद्धिमान् की रचना नहीं मानता, अपितु वह स्पष्ट कहता है कि प्रकृति का कार्यकलाप किसी सचेतन चिंतन का परिणाम नहीं है।' बुद्धि रहित प्रकृति के बारे में कहा जाता है कि वह वैसे ही कार्य करती है जैसे वृक्ष फलों को उत्पन्न करते हैं।' पुरुष स्वयं रचनात्मक शक्ति नहीं है, परंतु प्रकृति जो 'अनेकरूप विश्व' को उत्पन्न करती है वह पुरुष के मार्गदर्शन एवं संपर्क के कारण ही करती है। इस सिद्धांत को लंगड़े और अंधे के उदाहरण द्वारा समझाया है। सांख्य के अनुसार सृष्टि न यथार्थ है न अयथार्थ, फिर भी वर्णनीय है, क्योंकि अवर्णनीय की सत्ता नहीं है।' सांख्य मतानुसार उसका न तो अस्तित्व 1. दीघनिकाय पोट्ठपादसुत्त 2. मज्झिमनिकाय 63 चूलभालुक्यसुत्त 64, दीघनिकाय 9 3. न स्वती नाति परती.... भावा क्वचन केचन.मा.का. 11 4. असदकरणादुपादान.... सत्कार्यम्। सांख्यका.9 5. नहि नीलं शिल्पीसहस्त्रेण पीतं कर्तुं शक्यते" तत्व. कौमुदी- 2.9 6. सांख्यप्रवचन सूत्र 3.31 7. सांख्यप्रवचनसूत्र वृत्ति 2.1 8. पुरुषस्य दर्शनार्थं केवल्यार्थं तथा प्रधानस्यसांख्यका. 21 9. सांख्यप्रवचनसूत्र 5.54 15 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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