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________________ इसे सिद्धसेन ने सूचित भी किया है।' श्वेताम्बर और दिगंबर दोनों ही संप्रदाय दर्शन को तार्किक रूप से प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते। माणिक्य नंदी ने न केवल दर्शन को प्रमाणबाह्य कहा, अपितु उसे प्रमाणाभास भी कहा है। वादिदेव सूरि ने अपने प्रमाणनयतत्वा. ग्रन्थ में भी यही बात कही है।' यद्यपि अभयदेव ने दर्शन को प्रमाण कहा है, परंतु उसे तार्किक दृष्टिकोण से नहीं, अपितु आगमिक दृष्टि की मुख्यता को दृष्टिगत रखते हुए सम्यग्दर्शन के अर्थ में कहा है। पंडित सुखलालजी ने दर्शन का अर्थ साक्षात्कार की अपेक्षा “सबल प्रतीति" अर्थ पर बल दिया है। क्योंकि अगर साक्षात्कार अर्थ करे तो विभिन्न दार्शनिकों के मतभेद नहीं होने चाहिए। साक्षात्कार के योग्य पुनर्जन्म, उसका कारण, पुनर्जन्म ग्राही कोई तत्व एवं पुनर्जन्म के कारणों का उच्छेद, ये चार प्रमेय ही साक्षात्कार के विषय माने जा सकते हैं। इन प्रमुख प्रमेय तत्वों के विशेष स्वरूप के विषय में एवं इनके विस्तृत मंथन चिंतन में प्रमुख दर्शनों का कभी तो इतना विरोध और मतभेद देखा जाता है कि तटस्थ तत्वान्वेषी असमंजस में पड़ जाता है। इस प्रवृति को देखते हुए इसका अधिक उपयुक्त अर्थ 'सबल प्रतीति' है।' जैन दर्शन में इसका दूसरा अर्थ है सामान्यबोध, जिसे अनाकार उपयोग भी कहते हैं। श्वेताम्बर- दिगंबर दोनों मान्यताओं में "अनाकार" शब्द ज्यादा प्रचलित है। लिङ्ग सापेक्ष उपयोग या बोध तो ज्ञान है और लिङ्गनिरपेक्ष साक्षात् होने वाला बोध अनाकार या दर्शन है। यह तो एक मत है, दूसरा मत यह भी है कि जो मात्र वर्तमान ग्राही बोध है वह दर्शन है और जो त्रिकालग्राही बोध है वह ज्ञान है।' __ प्रचलित भाषाव्यहार में दर्शन, दार्शनिक, दर्शनसाहित्य आदि जो शब्द प्रयुक्त होते हैं वे तत्वविद्या से संबंधित हैं। 1. अत्र च यथा सांकाराद्धायां सम्यग्मिथ्यादृष्ट्योविशेषः, नैवमस्तिदर्शने, अनाकारत्वे उभयोरपि __तुल्यत्वादित्यर्थः"- तत्वार्थभा. टीका 2.9 2. परीक्षामुख 6.2 3. अज्ञानात्मकानात्म...... यथा सन्निकर्षा..... ध्यवसाया इति. प्रमाण 6.24, 25 4. सन्मतिटी. पृ. 457 5. पं. सुखलालजी : दर्शन और चिंतन पृ. 67, 68 6. तत्त्वार्थ भाष्य टीका 2.9 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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