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________________ बोर्ड से लेकर एम.ए. तक की शिक्षा यात्रा में समग्रभावेन सहयोगी बने डॉ. ए.एल. गांधी, डॉ. पी. मिश्रा, डॉ. एम.एल. शर्मा, डॉ. एम.एम. कोठारी,, डॉ. विमला भंडारी, मि. आसोपा जोधपुर एवं श्री भूरचंदजी शाह, बाड़मेर आदि सभी की मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। शोधयात्रा की प्रस्तुति का सपना सार्थक करने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा- डॉ. कमलचंदजी सोगानी, जयपुर का। उन्होंने पूर्ण अनुग्रह के साथ मेरे संकोच को तोड़कर मेरी शोध क्षमता को अनावृत्त किया। यद्यपि मेरे द्वारा लिखित अध्यायों में उन्होंने परिवर्तन सामान्य सा ही किया पर ग्रन्थ की पुष्टि उन्होंने ही की। निःसंदेह ग्रन्थ प्रस्तुति के निर्माण का श्रेय उन्हीं को जाता है। मैं विनम्रभाव से उनकी कृतज्ञता को शब्दों में बांधने का असफल प्रयास करती हैं। शोध निमित्त जयपुर प्रवास के दौरान जिनकी आत्मीय स्निग्धता ने अपरिचित परिवेश में भी मेरे श्रमशील मस्तिष्क को ऊर्जा व तरलता दी वे सी.डी. देवल I.A.S., शमीम दीदी अख्तर R.A.S. दुलीचंदजी टांक, महोपाध्याय विनयसागरजी, (स्व.) महावीर प्रसादजी, श्रीमाल, कनक श्रीमाल बाबूलाल डोसी, जतनकुँवर गोलेच्छा , सौ. मेम बाई सुराणा आदि की भी हृदय से कृतज्ञ हूँ। मैं श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, मांडवला के अध्यक्ष श्री द्वारकादास डोसी, बाड़मेर को भी विस्मृत नहीं कर सकती। उनके प्रयासों से मुझे विषय से संबंधित सामग्री प्राप्त होती रही। __मैं अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ के अध्यक्ष पितृहृदय निश्छलमना भाईजी श्री हरखचंदजी नाहटा के प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ जिनके प्रयासो से मेरा वाय-वा जोधपुर में व्यवस्थित रूप से संपन्न हो गया। मैं पूज्या समतामूर्ति, तपस्विनी प्रकाश श्री जी.म.सा., माताजी म. श्री रतनमाला श्री जी.म.सा. के चरणों में विनम्रभावेन वंदनाएँ अर्पित करती हूँ जिनकी सान्निध्यता में मैं अपनी संयम और स्वाध्याय की यात्रा निर्विघ्न Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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