SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की कर्ता भोक्ता की व्याख्या भी सिद्ध हो गयी और अस्तित्व की अनिवार्य शर्त परिणमन की समस्या भी हल हो गयी। अर्थक्रियाकारित्व तभी घटित होगा जब वस्तु नित्यानित्य होगी। _अगर हम नित्य वस्तु में अर्थक्रियाकारित्व स्वीकार कर लें तो प्रश्न होगा कि वह अर्थक्रिया क्रम से होगी या अक्रम से? अगर हम यह मानें कि क्रम से होगी तो यह तर्क संगत नहीं लगेगा क्योंकि जब वस्तु समर्थ है तो वह एक ही क्षण अर्थक्रिया क्यों नहीं कर लेगी? जब वह समर्थ है तो काल अथवा अन्य सहकारी कारणों का इंतजार क्यों करेगी? अगर इंतजार करती हैं तो उसका सामर्थ्य आहत होता है। अगर हम यह मान लें कि जिस प्रकार समर्थ होते हुए भी बीज पृथ्वी, जल, वायु आदि के सहयोग से ही अंकुर को उत्पन्न करता है अन्यथा नहीं, इसी प्रकार नित्य पदार्थ समर्थ होते हुए भी सहयोगी कारणों के बिना अर्थक्रिया नहीं करता। तो फिर प्रश्न उठेगा कि वह सहकारी कारण नित्य पदार्थ का कुछ उपकार करते हैं या नहीं? यदि उपकार करते हैं तो यह उपकार पदार्थ से भिन्न हैं या अभिन्न है?यदि वह सहकारी कारण अभिन्न है तो नित्य पदार्थ ही अर्थक्रिया करता है। अगर सहकारी नित्य पदार्थ से भिन्न हैं तो प्रश्न होता है कि सहकारी कारण और पदार्थ में क्या संबंध होता है? इन दोनों में संयोग संबंध बन नहीं सकता क्योंकि संयोग संबंध दो द्रव्यों में होता है जबकि एक द्रव्य है, एक क्रिया है। न समवाय संबंध बन सकता है क्योंकि वह तो एक है और व्यापक है। अगर समवाय संबंध स्वीकार करेंगे तो फिर नित्य पदार्थ और अर्थक्रिया की भिन्नता भी नहीं रहेगी। अतः हमें यह मानना होगा कि अर्थक्रिया नित्य पदार्थ में क्रम से तो संभव नहीं है। अब अगर यह कहें कि क्रम से न होकर नित्य पदार्थ में अर्थक्रिया अक्रम से होती है तो भी संभव नहीं हैं क्योंकि अगर एक साथ ही अर्थक्रिया कर ली तो दूसरे क्षण में वह क्या करेगा।? अत: यह संभव ही नहीं है कि नित्य पदार्थ अर्थक्रिया करें। अगर सांख्य के नित्यवाद में अर्थक्रिया संभव नहीं है तो क्या बौद्ध के क्षणिक पदार्थ में 212 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy