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________________ न होकर पुद्गल की पर्याय है। छाया दो प्रकार की होती है। दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्यों में आदर्श के रंग आदि की तरह मुखादि का दिखना, तद्वर्ण परिणत छाया तथा दूसरी प्रतिबिम्ब मात्र होती है।' विश्व में प्रत्येक इन्द्रियगोचर होने वाले मूर्त पदार्थ से प्रतिपल तदाकार प्रतिच्छाया प्रतिबिंब के रूप में निकलती रहती है और वह पदार्थ के चारों ओर निरंतर आगे बढ़ती रहती है। मार्ग में जहाँ उसे अवरोध मिलता है, वहाँ ही वह दृश्यमान होती रहती है। प्रतिच्छाया के रश्मिपथ में दर्पणों (Mirrors) और अणुवीक्षों (Lenses) का आ जाना भी एक प्रकार का आवरण है। इसी प्रकार के आवरण से वास्तविक (Real) और अवास्तविक Virtual) प्रतिबिम्ब बनते हैं। ऐसे प्रतिबिंब दो प्रकार के होते हैं। वर्णादि विकार परिणत और प्रतिबिम्ब मात्रात्मका वर्णादि विकार परिणत छाया में विज्ञान के वास्तविक प्रतिबिम्ब लिये जा सकते हैं, जो विपर्यस्त (Inverted) हो जाते हैं और जिनका परिमाण (Size) बदल जाता है। ये प्रतिबिम्ब प्रकाश रश्मियों के वास्तविक (Actually) मिलन से बनते हैं। प्रतिबिंबात्मक छाया के अन्तर्गत विज्ञान के अवास्तविक प्रतिबिंब Virtual images) रखे जा सकते हैं जिनमें केवल प्रतिबिंब ही रहता है। प्रकाश रश्मियों के मिलने से ये प्रतिबिम्ब नहीं बनते।' आधुनिक विज्ञान ने ऐसे एलेक्ट्रानिक तोलमापी यंत्र तैयार किये हैं जिनकी सूक्ष्म मापकता अकल्पनीय है, जिनमें 1000 पृष्ठों के ग्रन्थों के अंत में बढ़ाये हुए एक फुलस्टाप, परछाई जैसी 'न कुछ वजनी वस्तुओं के भार भी ज्ञात किये जा सकते हैं। विज्ञान लोक का उल्लेख यह सिद्ध करता है कि परछाईं पदार्थ है। और वह इतना भारवान भी है कि उसे तौला जा सकता है। प्रतिबिंब कभी-कभी मृग मरीचिकाओं के रूप में भी प्रकट होते हैं। गर्मी में दोपहर के समय रेगिस्तान जहाँ मीलों तक पानी का नामोनिशान नहीं होता, वहाँ पानी से भरे जलाशय दिखते हैं। मृग अपनी प्यास बुझाने जाता है, पर उसे वहाँ पानी नहीं मिलता। वह दूसरी जगह जाता है, जहाँ उसे 1. त. रा. वा. 5.24 16., 17.489 2. स. सि. 5.24 572 3. मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ पृ. 385 4. विज्ञान लोक दिसम्बर 1964 पृ. 42 199 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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