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कुछ दार्शनिक अंधकार को पुद्गल की पर्याय न मानकर प्रकाश का अभाव कहते हैं और उसके चार कारण बताते हैं:
( 1 )
क्योंकि इसमें कठोर अवयव नहीं है।
( 2 )
क्योंकि यह अप्रतिघाती है।
( 3 ) क्योंकि इसमें स्पर्श का अभाव है।
(4) इसमें खण्डित अवयवीरूप द्रव्य विभाग की प्रतीति नहीं होती । परंतु जैन दर्शन इनका खण्डन करते हुए कहता है कि अंधकार भी प्रकाश की तरह चक्षु का विषय है। प्रकाश के परमाणु ही अंधकार के पर्याय में परिणत होते हैं। यह भी दृष्टिगत होता है, अतः स्पर्शवान् है क्योंकि स्पर्श, रस, गंध और वर्ण में से किसी एक के रहने पर बाकी के तीन गुण उसमें अवश्य रहते हैं। यही पुद्गल का लक्षण भी है। अतः प्रकाश और अंधकार में किसी प्रकार का अंतर नहीं है।
प्रश्न हो सकता है कि दीपक के परमाणु अंधकार पर्याय (विसदृश ) में कैसे परिणत हो सकते हैं? निम्नलिखित उदाहरण से इस प्रश्न का समाधान हो जायेगा। प्रकाशवान् अग्नि से गीले इंधन के सहयोग से अप्रकाशवान् धुएँ की उत्पत्ति होती है। अतः यह नियम नहीं हो सकता कि सदृश से सदृश कार्य ही उत्पन्न हो । अमुक सामग्री मिलने पर विसदृश कार्य भी उत्पन्न होते हैं। '
विज्ञान ने भी अंधकार को प्रकाश की तरह स्वतंत्र पदार्थ माना है। विज्ञान के अनुसार अंधकार में भी उपस्तु रक्त ताप किरणों के सद्भाव हैं जिनमें बिल्ली और उल्लू की आँखें तथा कुछ विशिष्ट अचित्रीय' पट (Photographic Plates ) प्रभावित होते हैं। इससे स्पष्ट है कि अंधकार का अस्तित्व दृश्य प्रकाश से (visible light ) से पृथक् है।
छायाः - प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है।" प्रकाश पथ में अपारदर्शक कार्यों (Opeque bodies) का आ जाना आवरण कहलाता है। छाया अंधकार की कोटि का ही एक रूप है। यह भी प्रकाश का अभाव
1. स्याद्वादमंजरी 5.16.18
2. हजारीमल स्मृति ग्रन्थ पृ. 385 3. स. सि. 5.24.572
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