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अजीव विषयक बंधः-लाख और काठ आदि का बंध अजीवविषयक बंध है।
जीव और अजीव विषयक बंधः-कर्म और नो कर्म बंध जीव और अजीव विषयक बंध है। कर्मबंध ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार का हैं, नो कर्मबंध औदारिकादि शरीर विषयक है।'
स्वाभाविक बंधः-यह भी दो प्रकार का होता है-(1) आदिमान (2) अनादिमान
आदिमान बंधः-स्निग्ध रुक्ष गुणों के निमित्त से बिजली, उल्का, जलधारा, इन्द्रधनुष आदि रूप पुद्गल बंध आदिमान है। ___अनादिमान बंधः-यह नव प्रकार का है-धर्मास्तिकाय बंध, धर्मास्तिकाय देश बंध, धर्मास्तिकाय प्रदेश बंध, अधर्मास्तिकाय बंध, अधर्मास्तिकाय देश बंध, अधर्मास्तिकाय प्रदेश बंध, आकाशास्तिकाय बंध, आकाशास्तिकाय देश बंध, आकाशास्तिकाय प्रदेश बंधा'
बंध की प्रक्रियाः-तत्वार्थ सूत्र में उमास्वाति ने बंध को भी पुद्गल पर्याय बताया और साथ ही बंध की प्रक्रिया को भी स्पष्ट किया। बंध क्यों और कैसे होता है? उमास्वाति ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि स्निग्ध (स्नेह) और रूक्षता के कारण ही बंध होता है।'
स्निग्धता और रुक्षता को अकलंक ने समझाते हुए स्पष्ट किया कि बाह्य और आभ्यंतर कारणों से स्नेह पर्याय की प्रकटता से जो चिकनापन है, वह स्नेह है उसके विपरीत रुक्षता है। दो स्निग्ध और रुक्ष परमाणुओं में बंध होने पर द्वयणुक स्कंध होता है। स्नेह और रुक्ष इन दोनों के अनंत भेद है। अविभाग परिच्छेद एक गुणवाला स्नेह सर्वजघन्य हैं प्रथम हैं। इसी तरह दो तीन चार संख्यात असंख्यात और अनंतगुण स्नेह रूक्ष के विकल्प है। जैसे जल से बकरी के दूध/घी में, बकरी के दूध से गाय के दूध और घी में अधिक स्निग्धता है। उसी तरह क्रमशः धूल से प्रकृष्ट रुखापन तुषखंड में और उससे भी प्रकृष्ट रुक्षता रेत में पायी जाती है। इसी तरह परमाणुओं में भी स्निग्धता और रुक्षता के प्रकर्ष और अपकर्ष का अनुमान होता है। 1. त. रा. वा. 5.24.9.487
2. त. रा. वा. 5.24.7.487 3. त.सू. 5.33 4. त. रा. वा. 5.33. 1-5,497.98
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