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इसी प्रकार इलेक्ट्रोनिक संगीत में भी विशिष्ट उपयोग है। इलेक्ट्रोनिक संगीत यंत्र में एक ऐसा छानक यंत्र होता है जो ध्वनि की अनावश्यक तीव्रता उतार चढाव आदि को छान कर अलग कर देता है। इस यंत्र में संश्लेषक (सिंपेसाइजर) का भी प्रयोग होता है। इसके द्वारा प्राकृतिक ध्वनियों को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है।
इस प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो जाता है कि शब्द पुद्गल है। शब्द की गति के विषय में पन्नवणा में विचार किया गया है।
"हे गौतम! जो भाषा भिन्न रूप में निःसृत या प्रसारित होती है, वह अनंतगुणी वृद्धि को प्राप्त होती हुई लोक के अंतिम भाग को स्पर्श करती हैं अर्थात् व्याप्त होकर संसार के पार तक पहुँच जाती हैं और जो भाषा अभिन्न रूप में निःसृत होती है, वह संख्यात योजन जाकर नाश को प्राप्त होती है तथा असंख्यात योजन जाकर भेद को प्राप्त होती है।"
इससे यह स्पष्ट होता है कि भाषा के दो रूप हैं:-एक अभिन्न रूप और दुसरा भिन्न रूप। अभिन्न रूप भाषा के मूल रूप का द्योतक होता है तथा भिन्न रूप भाषा मूल में परिवर्तित होकर रूपांतरित होने का सूचक है।
शब्दोत्पत्ति के कारणः-दो कारणों से शब्द की उत्पत्ति होती है। पहला कारण है- जब पुद्गल संहति को प्राप्त हो तब, जैसे घडी का शब्द एवं दूसरा कारण है- जब पुद्गल भेद को प्राप्त हो तब जैसे बांस के फटने का शब्दा
बंधः-जो बंधे या जिसके द्वारा बांधा जाय वह बंध है।' बंध के दो भेद
(1.) प्रायोगिक (2) स्वाभाविक
(1) प्रायोगिकः-जो प्रयोग जन्य हैं, जिसमें मन वचन काया का पुरुषार्थ हो। यह प्रायोगिक बंध भी दो प्रकार का है-(अ) अजीवविषयक (आ) जीव और अजीव विषयक।
1. पन्नवणा 11.41. 2. ठाणांग 2.220 3. त. रा. वा. 5.24.1.485
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