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अपनी ओर से
भारतीय चिंतनधारा में जैन दर्शन की चिंतन पद्धति अपना विशिष्ट महत्व रखती है। जैन दर्शन ने धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने के स्थान पर सहिष्णुता को अधिक मूल्यवान माना है। यही वैचारिक सहिष्णुता 'अनेकान्त' एवं आचार पक्षीय उदारता 'अहिंसा के माध्यम से प्रतिपादित हुई।
अहिंसा और अनेकांतवाद के धरातल पर खड़ा जैन दर्शन मात्र भारतीयों को नहीं अपितु विदेशी विद्वानों को भी सहज में ही प्रभावित करने में पूर्ण सक्षम है।
जैन दर्शन का चिंतन कल्पित नहीं है, अपितु अनुभव के अमृत से अनुप्राणित है। आज उसके अनेकों सिद्धांत विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुके हैं और भविष्य में खोज जारी है।
विश्व वंद्य करुणामूर्ति परमात्मा महावीर ने जिस सत्य का साक्षात्कार किया, उसी को निष्पक्ष दृष्टि से कल्याण और करुणा की भावना से ओतप्रोत होकर अभिव्यक्त किया और वही करुणामयी वाणी आचार्यों द्वारा परंपरा के रूप में हम तक पहुँची है।
___ केवलज्ञान का प्रकाश उपलब्ध होते ही तीन सिद्धांत महावीर द्वारा प्ररूपित हुए - "उत्पत्ति, स्थिति, विनाश।” इन तीन सिद्धांतों पर जैन साहित्य की शाश्वत और अटूट इमारत खड़ी हुई। प्रत्येक पदार्थ का स्वभाव त्रिगुणात्मक
पदार्थ के इस त्रिगुणात्मक स्वभाव पर मेरा यह शोध निबंध लिखा गया है। इस शोध प्रबंध में कुल पाँच अध्याय हैं जिनका परिचय इस प्रकार है
प्रथम अध्याय में मैंने भारतीय दर्शन में जैन दर्शन की विशेषता, सृष्टि
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