SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह समय अविभाज्य है और काल द्रव्य की सूक्ष्मातिसूक्ष्म पर्याय है। समय उत्पन्न होता है और नष्ट भी। जैसे आकाश द्रव्य के भाग करना संभव नहीं है, वैसे ही समय भी निरंश है। यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि जब पुद्गल परमाणु शीघ्र गति द्वारा एक समय में लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच जाता है, तब वह चौदह रोज तक आकाश प्रदेशों में श्रेणीबद्ध जितने कालाणु है, उन सबको स्पर्श करता है। अत: असंख्य कालाणुओं को स्पर्श करने से समय के असंख्य अंश होने चाहिये। इसका समाधान यह है कि कोई परमाणु एक समय में असंख्य कालाणुओं का उल्लंघन करके, लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच जाता है, यह परमाणु के विशेष प्रकार के परिमाण के कारण ही है। इससे समय के असंख्य अंश नहीं होते। जैसे अनंत परमाणु का कोई स्कंध आकाश के एक प्रदेश में समाकर परिमाण में एक परमाणु जितना ही होता है, यह परमाणुओं के विशेष प्रकार के अवगाह के कारण है।' गोम्मटसार के जीवकाण्ड में भी समय की यही व्याख्या दी है। संपूर्ण द्रव्यों के पर्याय की जघन्य स्थिति एक क्षणमात्र की होती है। दो परमाणुओं के अतिक्रमण करने के काल का जितना प्रमाण है, उसको समय कहते हैं। सूर्यगति निमित्तक व्यवहारकाल मनुष्य क्षेत्र में ही चलता है, क्योंकि लोक के ज्योतिर्देव गतिशील होते हैं और बाहर के ज्योतिर्देव अवस्थित है।' धवला में भी इसी बात की पुष्टि होती है कि त्रिकालगोचर अनंतपर्यायों से परिपूरित एक मात्र मनुष्य क्षेत्र संबंधी सूर्यमण्डल में ही काल है अर्थात् काल का आधार मनुष्य क्षेत्र संबंधी सूर्यमण्डल है।* निश्चय काल का लक्षणः-काल पाँच वर्ण, पाँच रस रहित, दो गंध और आठ स्पर्श रहित, अगुरुलधु अमूर्त और वर्तन लक्षण वाला है। जो निश्चय काल है, वही परिणमन करने में कारण होता है। 1. प्रवचनसार ता. वृत्ति 139. 2. गोम्मटसार जीवकाण्ड 172 3. गोम्मटसार जीवकाण्ड 577 4. धवला 4.151.320.5 5. पंचास्तिकाय 24 6. न.च. वृत्ति 135 180 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy