SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिवर्तन को ही सूचित करते हैं तो उन्हें अलग-अलग मानने की क्या तुक है? वर्तना और परिणाम में अन्तर (1) वर्तना और परिणाम यद्यपि परिवर्तन को ही सूचित करते हैं फिर भी इनमें सूक्ष्मता और स्थूलता का अंतर है। वर्तना सूक्ष्मता को इंगित करती है और परिणमन स्थूलता को, जैसे बालक से युवक। (2) वर्तना और परिणाम में प्रमाण का भी अंतर है। वर्तना को प्रत्यक्ष प्रमाण से नहीं जान सकते बल्कि उसका अनुमान करना पड़ता है, जबकि परिणाम को हम प्रत्यक्ष प्रमाण से जान सकते हैं। मिट्टी का घट के रूप में परिणमन परिणाम है। गति और स्थिति क्रिया का जब परिणाम में अन्तर्भाव होता है तो परिस्पंदात्मक क्रिया भी उसी के अंतर्गत आ सकती है। ऐसे में मात्र परिणाम का निर्देश करना चाहिये। क्रिया की अलग से क्या आवश्यकता है? इसका समाधान तत्वार्थ वार्तिक में इस प्रकार दिया है कि परिस्पंदात्मक और अपरिस्पंदात्मक दोनों प्रकार के भावों की सूचना के लिये क्रिया का पृथक् ग्रहण करना आवश्यक है। परिस्पंद क्रिया है और अन्य परिणाम।' । वर्तना आदि द्वारा काल का अनुमान होता है। काल का लक्षण यही बताया है कि जिससे मूर्तद्रव्यों का उपचय और अपचय लक्षित होते हैं वह काल है।' काल अखंड प्रदेशी नहीं है: काल आकाश की तरह अखंड और एकप्रदेशी नहीं है क्योंकि एक पुद्गल परमाणु एक आकाश प्रदेश से दूसरे आकाश प्रदेश पर जाता है और इसमें जो समय लगता है, अगर गहराई में जाकर देखे तो यह समय ही कालद्रव्य की पर्याय है। यह अतिसूक्ष्म होने से निरंश भी है। यदि कालद्रव्य को लोकाकाश के बराबर अखंड और एक माना जाता है तो इस अखंड समय पर्याय की निष्पत्ति नहीं होती, क्योंकि पुद्गल परमाणु जब एक कालाणु को छोड़ कर 1. त. रा. वा. 5.22. 20, 21.481 2. "येन मूर्तानामुपचयाश्चापचयाश्च लक्ष्यन्ते स काल:" रा. वा. 5.23 पृ. 481 (उद्धृत) 174 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy