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________________ परत्व तथा अपरत्वः-परत्व और अपरत्व क्षेत्रकृत भी हैं और गुणकृत भी। परत्व का तात्पर्य दूरवर्ती एवं अपर का समीपवर्ती कहा जाता है। (क्षेत्र की अपेक्षा) अहिंसा आदि प्रशस्त गुणों के कारण धर्म पर, अधर्म अपर कहा जाता है (गुणकृत की अपेक्षा से) कालकृत भी पर अपर होता है। जैसे सौ साल का वृद्ध पर और सोलह साल का युवक अपर है। इन तीन परत्वापरत्व में से कालकृत परत्वापरत्व ही लिया जाना चाहिये। तर्क भाषा में भी परत्वापरत्व की चर्चा उपलब्ध होती है। इसमें परत्व और अपरत्व को दो प्रकार से माना गया है - कालिक परत्व और कालिक अपरत्व तथा देशिक परत्व और देशिक अपरत्व। कालिक अर्थात् समय से संबंध रखने वाला तथा देशिक अर्थात स्थान से संबंध रखने वाला। जैसे आयु का बड़प्पन काल का द्योतक होता है, अत: कालिक परत्व कहा जाता है। आयु में छोटेपन को कालिक अपरत्व कहा जाता है। इसी तरह देशिक परत्व तथा देशिक अपरत्व को समझा जा सकता है। परिणाम के संबंध में कुछ तर्कः-कुछ शंकाकार यहाँ परिणाम जो कि काल का दूसरा लक्षण है, उसे लेकर प्रश्न करते हैं कि बीज अंकुर में है या नहीं? यदि है तो वह अंकुर नहीं कहा जा सकता, यदि नहीं है तो यह मानना होगा कि बीज अंकुर रूप से परिणत नहीं हआ क्योंकि उसमें बीज स्वभावता नहीं है। इस प्रकार अस्तित्व-नास्तित्व दोनों पक्ष में दोष आयेंगे। अकलंक इसका समाधान करते हैं कि कथंचित् अस्तित्व नास्तित्व में दोषों का आगमन संभव नहीं है। सद् असद् वाद नरसिंह की तरह जात्यंतर रूप है। इसे शालिबीजादि के उदाहरण द्वारा और भी स्पष्ट किया है। जैसे शालीबीजादि द्रव्यार्थिक दृष्टि से अंकुर में बीज हैं, यदि उसका संपूर्णतः विनाश हो गया होता तो शालि का अंकुर क्यों कहलाता? शालिबीज और शाल्यंकुर रूप पर्यायार्थिक दृष्टि से अंकुर में बीज नहीं है क्योंकि बीज का यदि परिणमन नहीं हुआ होता तो अंकुर कहाँ से आता? बीज अंकुर से भिन्न है या अभिन्न? यदि भिन्न है तो वह बीज का परिणमन नहीं कहा जा सकता। अगर अभिन्न है तो उसे अंकुर नहीं कह 1. रा. वा. 5.22. 22.481 2. "कालोपकारप्रकरणात् कालकतेऽत्र परत्वा परत्वे गोते" त.रा.वा. 5.22.22.481 172 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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