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________________ शुभाशंसा हरखचंद नाहटा अध्यक्ष अ. भा. खरतरगच्छ महासंघ अभी-अभी जानकारी प्राप्त हुई है कि डॉ. साध्वी विद्युत्प्रभाजी का शोधग्रंथ प्रकाशन की प्रक्रिया से गुजर रहा है, निःसंदेह आत्मिक आनंद हुआ। मैंने अपने जीवन के प्रारंभिक काल में ही श्रद्धेय श्रीमद् देवचंद्र, आनंदघन, समयसुंदर व रायचंद्र के पदों को विरासत में प्राप्त किया था और इन पदों के माध्यम से जड़-चेतन के स्वरूप का भेद समझने का भी प्रयत्न करता __ यह प्रक्रिया प्रिय युवापुत्र अशोक नाहटा की मृत्यु के बाद तो और गहरी होती चली गई थी। सच पूछो तो इतने भयानक सदमें से उबरने में मदद भी मात्र जड़-चेतन से संबंधित पदों ने ही की। यह पद तो मेरी रग-2 में रमा हुआ है जड़ ने चैतन्य बन्ने द्रव्यनो स्वभाव भिन्न, सुप्रतीतपणे बन्ने जेने समझाय छे; स्वरूप चेतन निज, जड छे संबंध मात्र, अथवा ते ज्ञेय पण परद्रव्य मांय छे; एवो अनुभवनो प्रकाश उल्लसित थयो, जड़ थी उदासी तेने आत्मवृत्ति थाय छे; कायानी विसारी माया, स्वरूपे समाया खा निग्रन्तनो पंथ भव अन्तनो उपाय छ।" श्रीमद् देवचंद्र ने नेमिनाथ के स्तवन में पंचास्तिकाय के नामों का दिग्दर्शन कराते हुए कहा कि किनका त्याग करना चाहिए और किन्हें अपनाना चाहिए-- Jain Education International. 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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