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द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य है, क्षेत्र की अपेक्षा लोक तथा अलोक प्रमाण है। काल की अपेक्षा अतीत, अनागत और वर्तमान तीनों में शाश्वत है। भाव की अपेक्षा अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है। गुण की अपेक्षा अवगाहन गुण वाला है।
उत्तराध्ययन में भी आकाश के अवगाहन गुण को ही पुष्ट किया है।
यहाँ प्रबुद्ध वर्ग में एक समस्या उभर सकती है कि हम आकाश कहें किसे? जो हमें नीला, पीला दिखायी देता है, वह आकाश है? परंतु नीला पीला तो आकाश हो नहीं सकता, क्योंकि आकाशास्तिकाय का लक्षण तो अवर्ण है तथा अमूर्त है। वह तो इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता। यह सर्दी गर्मी जो कुछ हमें प्रतीत होता है वह वायु की है, आकाश की नहीं। यह वायु आकाश में व्याप्त है। सुगंध/दुर्गन्ध आदि पुद्गल स्कंधों की हैं, आकाश की नहीं। नीला पीला दीखता है ये भी वायु मंडल में तैरने वाले क्षुद्र अणुओं के रंग हैं और सूर्य की किरणों को प्राप्त करके इस रंग में रंग जाते हैं।
वैशेषिक' शब्द को आकाश का गुण मानते हैं और इसे सिद्ध करने के प्रयास भी करते हैं, परंतु शब्द आकाश का गुण न होकर पौद्गलिक है। क्योंकि वैशेषिकों ने जोहेतु उपस्थित किये हैं, वे असिद्ध हैं।' शब्द आकाश का गुण न होकर पुद्गल का गुण है क्योंकि अनेक पुद्गलों के टकराने से शब्द उत्पन्न होता है और वायुमण्डल में एक कंपन विशेष उत्पन्न करता है।
हमारे चारों और जो भी खाली जगह (Vaccum)दिखायी देती है, वही आकाश है, जिसे अंग्रेजी भाषा में space कहा जाता है। Sky और Space में अंतर है। Sky तो वह है जो पुद्गल के रूप में विवेचित किया है अर्थात् रंगबिरंगा दिखता है।
आकाश का उपकार है-धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गल को अवगाह देना। 1. ठाणांग 5.172 एवं भगवती 2.10.4 2. भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाह लक्खणं, उत्तराध्ययन 28.9 3. वैशेषिक सूत्र 22.1.27, 29-32 एवं तत्र आकाशस्य गुणाः शब्द संख्यपरिमाण पृथक्त्वं संयोग विभागा....... प्रशस्त
भा.पृ. 23-25. 4. स्याद्वादमंजरी 14 पृ. 127-128. 5. पदार्थ विज्ञान पृ. 167 ले. जिनेंद्र वर्णी 6. सभाष्यतत्वार्थाधिगम सूत्र 5.18 पृ. 262
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