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________________ इसे शहद लिपटी तलवार की उपमा दी गयी है। जिस प्रकार चाटने में तो शहद की मिठास का अनुभव होता है, परंतु तुरंत जिह्वा पर घाव होने के कारण जिस प्रकार दर्द होता है, उसी प्रकार साता वेदनीय के उदय के समय तो सुख प्राप्त होता हैं परंतु असाता वेदनीय के उदय के समय तीव्र दुःख का अनुभव होता है। मोहनीयः-मोहनीय कर्म को संसार का मूल कारण माना जाता हैं। यह आत्मा का शत्रु है क्योंकि इसीके कारण समस्त दुःख हैं। इसे शराब की उपमा दी गई है। __ आयु कर्म- किसी विवक्षित शरीर में जीव के रहने की अवधि को आयु कहते हैं। इसकी तुलना कारागार से की गयी है। जिस प्रकार न्यायाधीश अपराधी को कारागार में डाल देता है तब न चाहते हुए भी उसे वहाँ रहना पड़ता है। आयु कर्म चार प्रकार का है- नरकायु, मनुष्यायु, तिर्यंचायु और देवायु।' अधिक परिग्रही, आसक्त, हिंसक, कृतघ्न, उत्सूत्र प्ररुपक आदि क्रियायुक्त नरकायु का, कपटी, मायावी, प्रपंची आदि से युक्त आत्मा तिर्यंचायु का, अल्प कषायी, दानरुचि, सौम्य, मनुष्यायु का एवं पंचमहाव्रत धारी साधु, श्रावक, व्रतधारी आदि देवायु का बंधन करते हैं।' नाम कर्मः- जिसका निमित्त पाकर आत्मा गति, जाति, संस्थान, शरीर आदि प्राप्त करता है, वह नाम कर्म है।' इसके मुख्य दो भेद हैं- शुभ और अशुभ। शुभ और अशुभ के अनेकों उत्तरभेद भी होते हैं।' गोत्र कर्म - गोत्र कर्म के मुख्य दो भेद है- उच्चगोत्र और नीचगोत्रा जिसके उदय से पूज्यनीय कुल में जन्म होता है, वह उच्चगोत्र और जिसके 1. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) गा.11. 2. त.सू. 8.10. एवं ठाणांग 4.286. 3. पैतीस बोल विवरण पृ. 2,3. 4. स.सि. 8.11.755. 5. उत्तराध्ययन 33.13 6. त.सू. 12. 115 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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