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पौधों की संपूर्ण क्रिया, प्रतिक्रिया स्वतः अंकित हो जाती थी। इन यंत्रों से उन्हें स्पष्ट विश्वास हो गया कि वनस्पति और मनुष्यों पर नींद, ताप, वायु और आहार का लगभग समान ही प्रभाव पड़ता है।'
बसु ने सिद्ध कर दिया कि सचेतनता, स्पंदनशीलता, शारीरिक गठन, भोजन, वर्धन, श्वसन, प्रजनन, अनुकूलन, विसर्जन, मरण (Irritability,Movement, Organisation, Food, Growth, Respiration, Reproduction, Adoptation, Excreation and Death.) आदि समस्त गुण वनस्पति में भी विद्यमान है।
वनस्पति में आहार संज्ञा प्रयोगसिद्ध है। तत्क्षण तोड़े गये डंठल सहित सफेद या अन्य गुलाब को लाल पानी में डंठल सहित डुबाकर रखिये। कुछ समय बाद पत्तियों पर लाल रंग स्पष्ट दिखेगा।
प्यासे केले के पौधे को जल मिलते ही पीने लगता है, जिसकी आवाज भी पास बैठा व्यक्ति सुन सकता है। मुरझाये पौधों को मुस्कुराते प्रतिदिन हम देखते हैं।
वनस्पति प्रकाश से भी प्रभावित होती है। पौधों के तने सदा प्रकाश की ओर तथा उसकी जड़ विरुद्ध दिशा में जमीन की ओर मुड़ती जाती है।
प्रजनन Reproduction:_जीवधारी में ही प्रजनन शक्ति पायी जाती है। वनस्पति भी प्रजनन करती है। सेचन क्रिया द्वारा परागकण योनिनली के मार्ग से गर्भाशय (Overy)में पहँचते हैं। वहाँ प्रत्येक परागकण एक रजकण से जुड़ता है। जितने रजकण होंगे उतने ही बीज बन गर्भाशय में पैदा होते हैं। सेचन स्व भी होता है और पर भी।
जब किसी फल का परागकण उसी फल से योनिछत्र तक पहुँचता है तो वह स्वसेचन कहलाता है। जैसे कृष्णकोली, सूर्यमुखी आदि फूलों का स्वसेचन होता है। जब किसी फूल का पराग कण अन्य कीट, पतंग, जानवर, जल आदि द्वारा पहुँचता है तो परसेचन कहलाता है। भ्रूण विज्ञान (वनस्पति विज्ञान की उपशाखा) इसी विषय पर आधारित है। भारतीय वैज्ञानिक प्रो. पंचानन माहेश्वरी भ्रूण वैज्ञानिकों में अग्रणी हैं जिन्होंने अनेकों प्रयोग इस विषय पर किये हैं।' 1. नवनीत फरवरी 1957 पृ. 37 2. प्रारंभिक जीव विज्ञान पृ. 197. 3. जैन आगमों में बनस्पति विज्ञान पृ. 15-16
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